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________________ - ११.] त्रिषष्टि शन्ताका पुरुष-चरित्रः पर्व १, सर्ग १. इस तरह माया-मिथ्यात्वसे युक्त इर्षा करके, इस घुरे कामकी आलोचना न करके उन्होंन श्रीनामकर्म-श्रीपर्याय जिससे मिले ऐसा नामकर्म बाँधा । (६) उन छहों महर्षियोंने तलवारकी धाराके समान संयमका, अतिचाररहित, चौदहलाख पूर्व (समयविशेष) तक पालन किया। फिर धीर उन छहों मुनियोंन दोनों तरहकी संलेखनापूर्वक पादोपरामन अनशन अंगीकार कर, उस देश का त्याग किया। (६१-६११) बारहवाँ भव छहों सर्वार्थसिद्धि नामके पाँचवें अनुत्तर विमानमें देतीस सागरोपमकी श्रायुवान देवना हुए। (३११) आचार्य श्री हेमचंद्रविरचित त्रिपष्टि शलाका पुरुष चरित्र महाकाव्यके प्रथम पर्वमें, धन आदिक बारह भवोंका वर्णन करनेवाला--- प्रथम मर्ग पूरा हुआ।
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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