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________________ १०८] त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्व १. सर्ग १. १२. ब्रह्मचर्य पद- अहिंसादिक मूलगुणोंमें और समिति आदि उत्तरगुणोंमें अतिचाररहित प्रवृत्ति करना बारहवीं ब्रह्मचर्यस्थानक अाराधना है। १३. समाधि पद-पल पल और क्षण क्षण प्रमाद छोड़कर शुभध्यानमें लीन रहना तेरहवीं समाधि आराधना है। - १४. तप पद-मन और शरीरको पीड़ा न हो, इस तरह यथाशक्ति तप करना चौदहवीं तपस्थानक आराधना है। १५. दान पद-मन, वचन और कायकी शुद्धिपूर्वक तपस्वियोंको अन्नादिकका यथाशक्ति दान देना पंद्रहवीं दानस्थानक अाराधना है। १६. वैयावृत्य पद या वैयावच्च पद- आचार्यादि दसका, अन्न, जल, और आसन वगैरहसे वैयावृत्य-भक्ति करना सोलहवीं वैयावृत्यस्थानक आराधना है। १७. संयम पद-चतुर्विध संघके सभी विघ्नोंको दूर करके मनमें समाधि (संतोष ) उत्पन्न करना सत्रहवीं संयमस्थानक आराधना है। १८. अभिनवज्ञान पद--अपूर्व ऐसे सूत्र और अर्थ इन दोनोंका प्रयत्नपूर्वक ग्रहण करना अठारहवीं अभिनवज्ञान स्थानक आराधना है। १. जिनेश्वर, सूरि, बाचक, मुनि, बालमुनि, स्थाविर मुनि, ग्लान ( रोगी ) मुनि, तपस्वी मुनि, चैत्य और श्रमसंघ-ये दस ।
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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