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________________ 5] त्रिपष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्व १. सर्ग १. प्रभुका आगमन सुनकर वजनाभ चक्रवर्ती वधुवर्ग सहित राजहंसकी तरह, सानंद प्रभुके चरणोंमें-समवसरणमें आया और तीन प्रदक्षिणा दे, जगत्पतिको वंदना कर, छोटे भाईकी : तरह इंद्रके पीछे बैठा। फिर भव्यजीवोंकी, मनरूपी सीपमें बोध रूपी मोतीको उत्पन्न करनेवाली स्वाति नक्षत्रकी वर्षाके समान . प्रभुकी देशनाको वह श्रावकाग्रणी सुनने लगा। मृग जैसे गाना ... सुनकर उत्सुक होता है वैसे भगवानकी वाणी सुन उत्सुक बना हुआ वह चक्रवती हपंपूर्वक इस तरह विचार करने लगा। (८१८-८२१) . . यह संसार अपार समुद्रकी तरह दुस्तर (कठिनतासे तैरने लायक ) है। इससे तिरानेवाले तीनभुवनके मालिक ये मेरे पिताही है। अंधकारकी तरह, पुरुषोंको अत्यंत अंधा बनानेवाले मोहको, सूर्यकी तरह सब तरहसे भेद करनेवाले ये जिनेश्वरही हैं। चिरकालसे जमा हुआ यह कमांका समूह महा भयंकर असाध्य रोगके समान है। उसका इलाज करनेवाले ये पिताही हैं। अधिक क्या कहा जाए ! परंतु करणारूपी अमृतके सागररूपये प्रभु दुःखका नाश करनेवाले और अद्वितीय सुखको उत्पन्न करनेवाले हैं। अहो ! ऐसे स्वामीके होते हुए भी मैंने, मोहसे प्रमादी बने हुए लोगोंके मुखियाने, अपने आत्मा को, वहुत समयतक (धर्मसे ) वंचित रखा है।" (२२-२६) .... इस तरह विचारकर उस चक्रवर्तीने धर्मके चक्रवर्ती प्रभुसे भक्ति-द्गद वाणी द्वारा विनती की, "हे नाथ ! दर्भ जैसे क्षेत्रकी भूमिको कर्थित (निकम्मी) करता है, वैसेही अर्थसाधनका प्रतिपादन करनेवाले नीतिशास्त्रोंने मेरी बुद्धिको दीर्घ
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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