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________________ पाँचवाँ भव-धनसेठ [८३ - नगरीमें आया। और उसकी शक्तिसे सभी सामंत पुष्करपालके आधीन हो गए। विधि (रिवाज ) को जाननेवाले पुष्करपालने वयोवृद्धोंका जैसे सम्मान किया जाता है वैसे वनजंघ राजा का बहुत सम्मान किया। (६६८-६६६) कुछ समय बाद श्रीमतीके भाईकी अनुमति लेकर वनजंघ राजा वहाँसे श्रीमतीके साथ इस तरह चला जैसे लक्ष्मीके साथ लक्ष्मीपति चलता है। शत्रुओंका नाश करनेवाला वह राजा जब काँसवनके पास आया तब मार्गदर्शक चतुर पुरुषोंने उससे कहा, "अभी इस वनमें दो मुनियोंको केवलज्ञान उत्पन्न हुआ है, इससे देवताओंके आनेके प्रकाशसे दृष्टिविपसर्प निर्विप हुआ है। वे सागरसेन और मुनिसेन नामके दो मुनि सूर्य और चंद्रकी तरह अब भी यही मौजूद हैं और वे सगे भाई हैं। यह जानकर राजा बहुत प्रसन्न हुआ और विष्णु जैसे समुद्रमें निवास करते हैं वैसे उसने उस वनमें निवास किया। देवताओंकी पर्पदा ( सभा) से घिरे हुए और धर्मोपदेश देते हुए उन दोनों मुनियोंको, राजाने खीसहित भक्तिके भारसे झुका हुआ हो इस तरह झुककर वंदना की। देशनाके अंतमें उसने अन्न, पानी और सादि उपकरणोंसे मुनिको प्रतिलामा अन्न वस्त्रादि यहोराए-दिए । फिर वह सोचने लगा, "धन्य है एन मुनियोंको जो सहोदरभाव में समान है, कपायरहित , ममतारहित है और परिग्रहरहित है। मैं ऐसा नहीं है, इसलिए अधन्य हैं। बत महण करनेवाले अपने पिता सन्मार्गका अनुसरण करने. पाले ये पिता सारस (शरीरसे जन्मनेवाले) पुत्र और में ऐसा नाही करता इसलिए गरी हमला ममान । पा
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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