SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 98
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Lyric A}}}" $4 fifty Li छुटकारा है ही नहीं । इस प्रकार जब यह अपने न मियाकी अटी M PA THERMOS LIMI ढीली करा लेता है और उनके अभाव के बीच बाजार, एक, दो, तीन करके मूड कर लेता तब उनसे रोकता भी ऐसा है कि कुछ ने पूछों ! सारा ससार उनपर न्यौछावर कर देता और पतिव्रता स्त्रीको भाँति उनके दामनसे, ऐसा गठजोड़ा करता Chill है कि छुड़ाये भी नहीं छूटती । 11 यत्तद्रये विषमिव परिणामेऽमृतोपमम् सुखं सान्त्रिक प्रोक्तमात्स वृद्धि प्रसाद जमे 11 श्री ? 7713171 श्रात्मविलास } ער ܀ 1 lak २ अर्थ जो सुख प्रथम साधनकें और फीलमें यद्यपि विपके संदेश भौसतो है परन्तु परिणाम अमृत तुल्य है, ऐसा जो भव बुद्धि प्रसादसे उत्पन्न हा सुख ह सात्त्विक कहा गया है । 15 ।। ल यही वह शक्ति है, जिससे हमारी बान्वित सुखको स्रोतं वहता है, जो हमारी वोक्ति जीवन फल प्रदान करनेके लिये चिन्तामणिके समान है। आयुर्वेद शास्त्र आयु बढ़ानेवाले घृतको मी 'आयुष्य' शब्द प्रयोग किया गया है। इसी प्रकार वह चेष्टाएँ भी जिनके द्वारा हमें उपयुक्त वनको और "सम्मुख हो 'धर्मरूपसे अभिहित की गई है। इसी लक्ष्यको ध्यानम रेखकरें धर्मको 'अन्य लक्षण किया गया है: ★ w "यंतोऽभ्युदयनिःश्रेयससिद्धि से धर्मः" FIFAD २७, ܘܕܐ --- अर्थात् जिन चेष्टाओंसे इस 'लोकमें ऐश्वर्य तथा परलोकम मुक्तिकी सिद्धि हो वह 'धर्म' है 7 अव प्रश्न होता है, वह कौनसी चेष्टाएँ हो सकती है जिनेक धर्मका प्राण' केवल | स्याग हैं ।" द्वारा अभ्युदय व निश्रेयसैसिद्धि हो । 'उत्तर एक ही है- 'त्याग' 12 किसी भी चेष्टाको धर्मप बनानेके लिये जरुरी है,
SR No.010777
Book TitleAtmavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShraddha Sahitya Niketan
Publication Year
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy