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________________ ४] [पुण्य-पापकी व्याख्या दी जा सकती है। यद्यपि ऐसे सज्जनोंके द्वारा जातीय सुधारका बहुत-सा कार्य सम्पादन होता है, परन्तु अन्य जाति व देश के लिये उनके द्वारा बहुत कुछ हानि की सम्भावना भी हो सकती है। इस प्रकार उनकी चेष्टाएँ अधिक रजोगुणी होनेसे रागके अधिक विस्तारके कारण अधिक पुण्यरूप तो हुई, परन्तु अन्य जाति व देशके साथ द्वेपरूप होनेसे पापरूप भी हैं, केवल पुण्यरूप नहीं। , वर्तमान भारतमे जातीय सुधारका कोलाहल बहुत कुछ मचा हुआ है । प्रति वर्ष अनेक प्रकारको जातीय कान्फस होती हैं, परन्तु जाताय सुधार वैसा देखनेमें नहीं आता। इसपर विचार करनेसे पता चलता है कि ऐसे सुधारकलोग प्रायः दूमरी श्रेणीके होते हैं जिनका अहंभाव कुटुम्ब तक ही, परिमित रहता है, जातिके अन्दर उनका अहंभाव अभी विकसित नहीं हुआ और वे कुटुम्बसम्बन्धी स्वार्थ से ऊँचे नहीं उठे । ऐसे पुरुषोंद्वारा यथार्थ रूपसे जातीय सुधार होना असम्भव है, बल्कि कुछ विगाड और जातीय द्वेपकी सम्भावना भी की जा सकती है । जिस प्रकार एक क्लर्क के द्वारा न्यायाधीश का कार्य चलना असम्भव है, इसी प्रकार इनके द्वारा जातीय सुधार होना कठिन है, क्योंकि अभी उनका आत्मभाव जाति में विकसित नहीं हुआ, बल्कि अभी उनका आत्मत्व कुटुम्ब तक ही परिमित है । अर्थात् अभी कुटुम्ब को ही वे अपनो आत्मा माने हुए है, जातिको उन्होंने अभी अपनो आत्मा हो नहीं जाना । यह नियम है कि सुधार हमेशा आपका ही किया जा सकता है, आत्ममिन्न वस्तुका तो सुधार ही कैसा ? इसलिये जिस वस्तुके साथ जब तक आत्मसम्बन्ध स्थिर न हो ले, तब तक उसका मुधार नहीं हो सकता । जिन पुरुषों में कुटुम्ब वक ही आत्मभाव संकोर्ण
SR No.010777
Book TitleAtmavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShraddha Sahitya Niketan
Publication Year
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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