SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 525
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २७ ) है, तेरी परीक्षामें पूरे उतरनेके योग्य नहीं। हाँ! इसी प्रकार तेरी कृपा बनी रही तो कोई बड़ी बात नहीं कि हम 'बावन तोला पाव रत्ती ठीक-ठीक उतरें। तु अपना रहम कर, तेरी दयासे सब कुछ सिद्ध होता है। हनुमानने तथा ग्वालोंने तेरी कृपा-कटानसे जव पर्वतको गैंदकी ममान नचा डाला तो ये दुःख तो तुच्छ हैं। तेरी मेहर हो तो ये तो हमारे लिये फूल हैं, ये तो तेरी एक प्रकारसे प्रेम-ठठोली बन सकते हैं । लाल-लाल आँखोंमे, चतुल्य वचनोंमे क्या तू विराजमान नहीं है ? यदि है, तो फिर हमारे लिये दुःख क्यों? हमको वह दृष्टि क्यों नहीं प्रदान करते, कि हम वहाँ आपको मॉकी कर सकें। सब करने करानेवाले तो तुम हो, मव नाच तुम हो तो नचाते हो, हम तो केवल काठकी पुतली हैं। जो शस्त्र रण-संग्राममे ही नहीं चलाया गया तो खाली वीर बनने से क्या ? सर्व कर्तापनेका अभिमान धारके बैठे हो, जो समयपर * ही वहाँ अपने देखनेकी दृष्टि न दी, तो कोपन तुम्हारा किस काम का ? लाल-लाल आँखोंमें छुपकर चोट मारनेका क्या काम ? खुले मैदानमे आओ, क्या सामने आनेमे तुझे लाज आती है ? क्या तेरी सुन्दरतामें बट्टा लग जायगा ? क्यों श्रोहले वह वह झाँकीदा। यह पड़दा किस तो राखीदा।। राजा दिलीप जब बनमें नन्दनीकी सेवा कर रहे थे, तव उनकी परीक्षाके लिये धर्मने सिंहरूप धारणकर नन्दनीको पकड़ लिया। दिलीपने तत्काल सिंहके सम्मुख अपना शरीर खड़ा कर दिया कि पहले इसका भक्षण कर । यह साहस देख सिंह तत्काल सौम्यरूपमे प्रकट हो आया । इसी प्रकार हे अन्तर्यामिन् ! आप मुझ नन्दनीके लिये साहसरूपी दिलीप भेजें, जिससे आपका यह नृसिंहावतार मेरे लिये आनन्दरूप बन जाय। 'अर्जी हमारी आगे मी तुम्हारी है।
SR No.010777
Book TitleAtmavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShraddha Sahitya Niketan
Publication Year
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy