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________________ जाता। अपना वह गीता-ज्ञान हमको भी प्रदान करो जो अर्जुनको दिया था, जिससे हम भी सब कुछ करते हुए कुछ न करनेवाले वनकर रहें। इतने कृपण क्यों होते हो ? मर्यको वारह (१२) महीने प्रकाश बख्श दिया, हमको आठों प्रहर निजानन्द देनेसे आप भूखे तो नहीं हो जाते। हे प्रभो! अब तो हम आप उस मायावीको देखनेके लिये तड़पते हैं, जिस अनन्तके श्राश्रय यह तुच्छ माया भी अनन्त हो रही है । अब तो मुमसे दो-दो बातें नहीं हो सकती कि आपके कुटुम्बकी भी देग्य-रेख रक्यूँ और आप दुलारे-प्यारेके मुखको भी निहारू । अब तो मेरी मधुकरी हो तो तुम, मेरी कुटी हो तो तुम और लकुटिया हो तो तुम । आपकी इच्छा हो तो भले अपने कुटुम्बकी देख-भाल रखो, मेरा क्या इनसे गुजारा होता है ? कृपा करो, अपना वह बुद्धि-बल दो कि जिससे हम आपके सर्वरूपको ज्यू -का-त्यू जानें। हाथोंसे जो कुछ करे वह आपकी सेवा हो, पाँचोंसे चले वह आपकी परिक्रमा हो, ऑखोंसे' जो कुछ देखें वह आपका रूप देखें, कानोसे जो कुछ सुनें वह आपका गुणानुवाद हो, जो कुछ खावें वह आपका प्रसाद हो और जो कुछ पीवें वह आपका चरणामृत ही हो। मम सर्वस्व स्वीकारहु हे कृपानिधान ! अपहुँ दोउ कर जोरे मैं श्रीभगवान् ! ॥१॥ (शेष पृ १० पर देखो) (८) अहङ्कार-दमन प्रार्थना हे भगवान् ! आप कल्याणस्वरूप हैं, कल्याणमूर्ति हैं, कल्याणके समुद्र हैं। आप कल्याणस्वरूपसे कोई बुराई कैसे निकल सकती है ? सूर्यसे अन्धकार कैसे प्रकट हो सकता है ?
SR No.010777
Book TitleAtmavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShraddha Sahitya Niketan
Publication Year
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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