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________________ ALA किया जा सकता है। मुक्तिके लिये अन्य कोई मार्ग है ही नहीं। 'नान्यः पन्था विद्यते ऽयनाय' (श्रुति) ... सत्यके जिज्ञासुओंको इन पंक्तियोंपर गम्भीर विचार करनेके पश्चात् अपना मार्ग निश्चित करना चाहिये । इस प्रकार भावोद्गार व भावशुद्धिको मुख्यताको लक्ष्य करके भावोद्गारमे उपयोगी व सहायक विभिन्न अधिकारियोंके अधिकारानुसार विभिन्न प्रकारके विचार व प्रार्थनाएँ नीचे उद्धृत की जाती हैं । अपने-अपने मनकी परिस्थितिको ध्यानमें रखकर यदि पाठक सचाईसे अपने-अपने अधिकारानुसार इनका क्रमसे सेवन करेंगे तो एक बड़ी मात्रामे भावशुद्धि इनका फल होगा, ऐसी आशा की जाती है। इन सब प्रार्थनाओंमेंसे जो-जो अपने चित्त के अधिकारानुसार रूचिकर हो उस-उसको कण्ठ कर लेना चाहिये । प्रभात जागकर और रात सोते समय स्थिरचित्तसे इष्टदेवकी मूनिका हृदयमें ध्यान करके दोनों हाथ जोड़े हुएशनैः शनैःविचारपूर्वक उस-उसकामन ही मन में मनन करना चाहिये और जिस स्थानपर मन स्थिर हो जाय वहीं रुक जाना चाहिये । हृदयमें जो अन्य निष्काम-भाव अधिक फुरे वे सचाईके साथ अधिकाधिक निकालने चाहिये ।।ॐ।। विभिन्न विचार और प्रार्थनाएं (१),भोगहरण-प्रार्थना हे भगवन् । इस मनुष्यजन्मका फल यह भोग नहीं किन्तु चित्तकी शान्ति ही इस जीवनका मुख्य फल है। यह जन्म आपने अपनी अपार कृपा करके अपनी प्राप्तिके लिए एक चिन्तामणिरूप हमको वखशीश किया था, जो कि वास्तवमें मोक्षद्वार है। परन्तु शोक कि हमने अबतक विषयभोगरूपी विषके बदले इसे लुटा दिया। हे प्रभो! यह भोग वास्तवमे
SR No.010777
Book TitleAtmavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShraddha Sahitya Niketan
Publication Year
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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