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________________ श्रामविलास होता है । यहाँ उनमे रजोगुणी अधिकता माथ-साथ स्नान अवस्थाका प्रसार तथा अन्नमय व प्राणमयकोशके अतिरिक्त मनोमयकोशका विकास भी पाया जाता है। यहाँ उनमें चंचलता का वेग तीव्र गतिसे चल पडता है । जेमे स्वप्न अवस्थामै मन के परिणाम बडी शीघ्रतासे होते हैं. वैसे ही उनमे यहाँ पाये जाते है। उनका मन फ एक लिये भी स्थिर नहीं होने पाता, दिनभर उनमे शारीरिक व मानसिक चेष्टाएँ अनियमित रूप से बनी रहती हैं, जोकि नीचेकी योनियों में मौजूद नहीं थीं। उनमें भूख-प्यापका वेग जोरों पर होता है, वे अपने वशों से प्यार करना भी जानते है, एक दूसरेके माथ चैमनस्य भी कुछ देर के लिये ठान लेते हैं, परन्तु स्थायी रूपसे नहीं, जोकि उनमें मनोमयकोश, रजोगुण व स्वप्न अवस्थाके विकास का परिचायक है। रजोगुणकी प्रौढता रहते हुए भी जातिभेदसे कपोत तथा मयूरादि योनियों में सत्त्वगुणकी अधिकता देखी जाती है। मनुष्य इनको पालते हैं और इनके द्वारा अनेक कार्य भी लिये जाते हैं । यह मनुष्योंके प्रति अपना प्रेमभाव प्रकट करना जानते हैं, इसलिये रजोगुण होते हुए भी इनको सत्त्वगुणप्रधान कहा जा सकता है। 'वैनतेवश्च पक्षिणाम' गी० अ० १० श्लोक ३० मे इसीलिये गण्डको भगवानने अपनी विभूति वर्णन किया है। अण्डजयोनिसे निकलकर जीवभावका विकास अव जरायुजयोनिमे होता है । मनुष्ययोनि भी यद्यपि जरायुजयोनि मे ही शामिल है, परन्तु मनुष्ययोनिको छोडकर अन्य चारपायों में रजोगुणके साथ-साथ सत्त्वगुणका भी विकास दखने में आता है । यहाँ उनमें अन्य तीन कोशोंके अतिरिक्त विज्ञानमयकोशका भी विकास देखनेमें आता है । अण्डजयोनिमे जितनी चंचलताका वेग मौजूद था वह अव इनमें नहीं है, किन्तु इनकी
SR No.010777
Book TitleAtmavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShraddha Sahitya Niketan
Publication Year
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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