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________________ २०७] [साधारण धर्म मे तो वह छुप ही क्या सकता था' बल्कि उल्टा अपने हुस्नके जोशसे तपाने लगा। सत्य है :-दिया अपनी खुदीको जो हमने उठा! वो जो परदा-सा वीचमे था न रहा ।। रहे परदेमे अब न वा परदानशी। कोई दूसरा उसके सिवा न रहा। प्यारे आनन्द । थोड़ा दम लो, शान्ति पकड़ो, निचले रहो, आखिर तुम ही तुम हो, दूसरा तो कोई है ही नहीं, फिर यह नाच-कूद कैसा? उत्तर मिला :-जाना आखिरन यह कि फोड़ेकी तरह फूट वहे । __ हम भरे बैठे थे क्यो आपने छेड़ा हमको । __ इतनेमेहमारे आत्मदेवने एक छलाँग मारी, 'दीवारे कहनहा' पर जा चढ़ा और हॅसता-हँसता झट परले पार । 'न हम न तुम, दफ्तर गुम। हैं हम तुम दाखिले दफ्तर, खिमेमय में है दफ्तर गुम । न मुजरिम मुहई याक्ती, मिटे क्या खुश बखेड़े जा॥ करवट बदली तो आँखें खुल गईं !!! दीवार कहकहा चीन देशमे एक दीवारका नाम है । कहावत है कि जो मनुष्य उसे दीवारपर चढ जाता है, वह परली तरफको देखकर हंसने लगता है, परली औरका कुछ हाल नहीं कह सकता और परली श्रीरको छलॉग मार जाता है फिर वापिस नहीं आता। + आनन्दमय-कोश। मदिरा पात्र, अर्थात् निजानन्द ।
SR No.010777
Book TitleAtmavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShraddha Sahitya Niketan
Publication Year
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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