SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 453
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ साधारण धर्म वस्तुको अपने स्थितिरूप प्रकाशके लिये ज्ञान की अपेक्षा है और मानको अपनी स्थितिके लिये वन्तुकी अपेक्षा सिद्ध होती है। (२४) शङ्का :-देवदत्तकी उत्पत्तिसं पूर्व यद्यपि देवदत्तज्ञान नहीं था, परन्तु देवदत्तकं नष्ट होनेपर देवदत्तज्ञान तो नष्ट नहीं हो जाता, किन्तु शेप रहता है। इसलिये 'वस्तुके नष्ट होने पर ज्ञान भी नष्ट हो जाता है। यह तुम्हारा कथन असङ्गत है। (२५) समाधान :-'यह देवदत्त है। ऐसा ज्ञान देवदत्तकी विद्यमानतामे ही होता है और देवदत्तकी वर्तमान स्थितिको सूचित करता है। परन्तु देवदत्तके नाश होनेपर 'यह देवदत्त है। यदि ऐसा ज्ञान शेप रहे तब यह माना जा सकता है कि वस्तुके नाश होनेपर भी ज्ञानका नाश नहीं होता। किन्तु देवदत्तके नष्ट होनेपर यह देवदत्त है ऐसा ज्ञान किसीके भी अनुभवसिद्ध नहीं, उसके नाश होनेपर तो 'वह देवदत्त था' ऐसा ही ज्ञानका श्राकार शेष रहता है, जो कि देवदत्तके वर्तमान-अभावको ही बोधन करता है और वह देवदत्ताभावके आश्रय ही रहता है। इस प्रकार वस्तुकी स्थिति अपने वृत्तिज्ञानके आश्रय और वृत्ति-ज्ञान की स्थिति वस्तुके आश्रय, दोनोकी स्थिति अन्योऽन्याश्रयरूपसे ही सिद्ध होती है। सुषुप्ति-अवस्थामे इसका प्रत्यक्ष प्रमाण मिल जाता है कि उस समय ज्ञान नष्ट हो जाता है तब वस्तुकी प्रतीति भी नही होती और वस्तु भी नष्ट हो जाती है, तथा वस्तु नष्ट हो जाती है तब देश-काल भी नहीं रहते। यदि वस्तुसे पूध देश-काल होते तो सुपुप्ति-अवस्थामे वस्तुके अभाव होनेपर देश-कालकी प्रतीति होनी चाहिये थी, परन्तु होती नहीं। और यदि ज्ञानसे पूर्व वस्तु होती तो सुषुप्तिमें ज्ञानका लोप होने पर वस्तुको प्रतीति होनी चाहिये थी, परन्तु नहीं होती। इसलिये इन चारोकी अन्योऽन्याश्रयता स्पष्ट प्रमाणित होती है।
SR No.010777
Book TitleAtmavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShraddha Sahitya Niketan
Publication Year
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy