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________________ १६१] [साधारण धर्म अभावमे भी कालकी स्थिति पाई जाती है तथा घट-पटादि पदार्थोंके नाशमें भी कालकी स्थिति पाई जाती है । इदानी घटो नास्ति' (अब घट नहीं है ) इत्यादि ज्ञान-व्यवहारमे वस्तुके अभावमे भी कालकी स्थिति सबके अनुभव सिद्ध है। (२०) समाधान :--'अभाव' श्रवन्तु नहीं बल्कि वस्तु है। जिस देश और जिस कालम घट है, उसी देश और उसी काल में घटाभाव नहीं रहता, किन्तु अपने प्रतियोगीसे भिन्न देशकालादिमे ही घटाभावकी उत्पत्ति होती है। नैयायिकोन 'अभाव' को पदार्थ माना है और प्रत्यक्ष-प्रमाणका विपय प्रिमेय ग्रहण किया है, वेदान्त तथा भट्ट-मतम भी 'अभाव' अनुपलब्धिप्रमाणका विषय प्रमेयरूपसे ग्रहण किया गया है। इस प्रकार जब कि 'अभाव' किसी देश व कालमे उत्पन्न होनेवाला है और प्रमा-ज्ञानका विषय प्रमय है, तव वह अवस्तु कैसे कहा जाय ? किन्तु वह तो वस्तुरूप ही है और सम्पूर्ण द्रव्य, गुण व कम वस्तुरूप ही हैं। इस प्रकार घटाभाव-काल घटाभावरूप वस्तु व देशके आश्रय ही स्थित रहता है और घटाभावके साथ ही उत्पन्न होता है, क्योकि कोई भी कालरूप व्यक्ति पूर्व स्थित नही है चल्कि नवीन ही उत्पन्न होती है। ब्रह्माण्डप्रलय तो ब्रह्माजीकी निद्रित अवस्था है, जो कि वस्तुरूप है और देशकाल-परिच्छेदचाली है, उस अवस्थारूप विकारके आश्रय ही प्रलय-कालकी "जिस वस्तुका अभाव हो वह वस्तु अपने अभावका 'प्रतियोगी' कहलाती है, जैसे घटाभावका प्रतियोगी घट है और पटाभावका प्रतियोगी पर है। प्रमाण (यथार्थज्ञान) का विषय जो पदार्थ वह प्रमेय' कहाता है। यथार्यजानके साधनका नाम 'प्रमाण' है। वेदान्त-मतमें प्रमाण छ प्रकारका माना गया है.--प्रत्यक्ष, अनुमान, शन्द, उपमान, अर्थारत्ति और अनुपलब्धि। .. .
SR No.010777
Book TitleAtmavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShraddha Sahitya Niketan
Publication Year
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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