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________________ [ साधारण धर्म (१८) समाधान:-अयपि काल ब्रह्माण्डव्यापी है, तथापि जब ब्रह्माण्डरूप व्यक्ति देशकृत व वस्तुकृत विकारफो प्राप्त हुई, तब उसके साथ ही और उराको श्राश्रय करके ही ब्रह्माण्डव्यापीकाल उत्पन्न हुआ । ब्रह्माण्डरूप-वस्तु व ब्राह्माण्ड-देशकी उत्पत्ति से पूर्व काल स्वतन्त्र असिद्ध है और ब्रह्माण्डोत्पत्तिके पश्चात् जितने-जितने विकार देशकृत व वस्तुकृत ब्रह्माण्डमे उत्पन्न हुए, उन-उनको आश्रय करके ही कालकी गणना होती गई। किसी न किसी देश व वस्तुकृत विकारके बिना कालकी स्वतन्त्र स्थिति कहीं भी नहीं पाई जाती। आत्माके स्वरूपमें तो कालका प्रवेश है नहीं, वह तो कालातीत है। क्योंकि जब उसके स्वरूपमें कोई विकार है ही नहीं, तब उस निर्विकारसे काल कहाँसे आये, किसी न किसी विकारके माथ ही कातकी उत्पत्ति होती है। यह पहले ही कहा जा चुका है कि काल व्यक्तिरूपने तो सर्वथा चञ्चल व अस्थिर ही है, केवल अपने कालल जातिरूपसे ही नित्य माना जा सकता है। भविष्यत्काल भूतकालमें बदल रहा है, वर्तमान काल तो किसी प्रकार पकड़ा ही नहीं जा सकता, केवल भविप्यत्व भूतकी सन्धिका नाम ही वर्तमान रख लिया गया है जो किती कालकी गणनामें नहीं आता; जैसे दो प्रामोकी सीमा देशके किसी भी अंशमे ग्रहण नहीं की जा सकती। इस प्रकार देवन्तकी उत्पन्तिके साथ ही जो कालरूप व्यक्ति उत्पन्न हुई, वह पूर्व प्रसिद्ध है। इसलिये कहना पड़ेगा कि देवदत्तकी उत्पत्तिके साथ ही देवदत्तोत्यत्ति-काल उत्पन्न हुआ और जब कि देवदत्तकी उत्पत्ति के साथ ही वह कालरूप-व्यक्ति उत्पन्न हुई, तब देवदत्तकी उत्पत्तिमें वह किसी प्रकार कारणरूपसे ग्रहण नहीं की जा सकती। क्योंकि देवदत्तकी उत्पत्तिसे पूर्व वह कालरूप-व्यक्ति असिद्ध है और प्राक् असिद्ध होनेसे वह कारणसामग्रीमें नहीं
SR No.010777
Book TitleAtmavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShraddha Sahitya Niketan
Publication Year
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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