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________________ १४७ [ साधारण धर्म -- तत्त्व-विचार :(१) स्थूल-सूक्ष्म और चर-अचररूप सम्पूर्ण अभ्याल एक निर्विकार फूटत्य सत्ताके) अविदेव व अधिभूत तथा जाता, आश्रय ही अशेष पिकारोंका ज्ञान, नेयादि त्रिपुटिल्प प्रपन्न, __सम्भव है। देश, काल व वस्तु +त्रिविधपरिच्छेदवाला ही है। अर्थात् त्रिविधपरिच्छेदमें ही सम्पूर्ण प्रपञ्च समा जाता है, विविध-परिच्छेदसे भिन्न प्रपञ्चका और कोई रूप है ही नहीं । तया कालका छोटेसे छोटा ऐसा कोई भाग नहीं, चाहे वह क्षणका हजारयाँ अंश भी क्यो न हो, कि जिस कातव्यक्तिमें यह प्रपञ्च निर्विकाररूपसे स्थित रहता हो। वल्कि काल के प्रत्येक अंशमें यह धिकारकी ओर तीन वेगसे दौड़ रहा है, वही प्रपञ्च कदाचिन भी नहीं है। अपने स्वरूपसे इस प्रकार विकारी होते हुए भी 'वही यह प्रपञ्च है' ऐसी प्रतीति अपने मूल मन-बुद्धयादि अन्तःकरण तथा इन्द्रियादिको, जो जातके साधन हैं 'अध्यात्म' कहते हैं। अन्तःकरण व इन्द्रियादिके मिन्न-मिन देवता, जिनकी ज्ञानमें सहायता है 'अघिदेव' कहलाते हैं। परभूतरचित संमार जो मानका विषय है 'अविभूत' कहा जाता है । जैसे चतु अध्यात्म है, सूर्य अधिदेव है और रूप अधिभूत है । ___+सम्पूर्ण प्रपत्र अध्यात्म व अधिदेवादिके अन्तर्गत ही है और वह देशकृत, कालकृत तथा वस्तुकृत परिच्छेद (हट) वाला ही है। अर्थात् किसी एक देशमें है अन्य देशमें नहीं तथा एक कालम है अन्य कालमें नहीं। परन्तु 'परमात्मा अपरिच्छिन्न (बहन) होनेसे त्रिविध-परिच्छेदोंसे रहित है। नाति व व्यक्तिवाले पदार्थ 'वस्तु-परिच्छेग' कहे जाते हैं।
SR No.010777
Book TitleAtmavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShraddha Sahitya Niketan
Publication Year
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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