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________________ १२५] [साधारण धर्म होता है और रेचक पथ्य । उपर्युक्त सिद्धान्तकी सत्यताम सम्पूर्ण वेद-शानं मुक्तकण्ठसे विना किसी विवादके अपनी साक्षी देते हैं। उस सच्चे सम्बन्धको जोड़नेके लिये प्रह्लादने पिताको नमस्कार किया, ध्रुवने मातासे मुँह मोड़ा, विभीषणने भ्राताको पीठ दी, बलिने गुरुकी उपेक्षा की और ब्राह्मणोंकी स्त्रियों और 'गोपियोंने अपने-अपने पवियोंकी आज्ञा भङ्ग करके उनका परित्याग किया। परन्तु किसी भी शाबने इन सब चेष्टायोंमें 'कृतघ्नतादि पापोंका आरोप न किया, बल्कि ये सब शांखोंद्वारा - पुण्यरूप ही प्रमाणित हुई। पिता वचन प्रह्लाद त्याग अपनो मत ठान्यो । यलिराजा गुरुवचन नेक हिरदै नहीं आन्यो । दई भ्रातको पीठ विभीषण कुल मरवायो। गोप्याँ पतिव्रत छाँड़ कियो अपनो मन भायो ।। यह निगम माँहि निन्दित करम करत लगे प्रतिवाय । हरिधर्म साधत जगन्नाथ अधर्म धर्म हो जाय ।। ' गाथा है कि शरद पूर्णिमाकी रात्रिके समय यमुनातटपर । जब भगवान्ने अपनी बंशीका मधुर नाद किया तो गोपियाँ ज्यकी ज्यू अपने घरेलू धन्धोका परित्यागकर उस मधुर-ध्वनिसे आकर्षित हो मदोन्मत्तके समान भगवान्के निकट भागी चली "आई। जो भोजन कर रही थी वह भोजन छोड़कर, जो बालकको स्तनपान करा रही थी वह बच्चेको पटककर और जो पतिसेवामें । लगी हुई थी वह सेवा. परित्यागकर दौड़ी ! सारांश, जब सब गोपियाँ एकत्रित हो गई तब भगवान्ने मधुर भाषामें उनको उपदेश किया, "हे गोपियो! नीके लिये संसारमें पतिव्रत-धर्मके समान अन्य कोई धर्म नहीं है। खियोंके लिये पति ही परमेश्वर 'है, इसलिये तुमको अपने पत्तियोंका परित्यागकर रात्रि के समय
SR No.010777
Book TitleAtmavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShraddha Sahitya Niketan
Publication Year
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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