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________________ १२१.] [साधारण धर्म है ? हृदय वर्फके समान शीतल हो गया है, सब कामनाएँ कूच कर गई हैं। जिस प्रकार समुद्र-मथनके पश्चात् मन्दराचल निकल जानेसे समुद्र क्षोभरहित हो गया था, इसी प्रकार देखो तो सही, इसका हृदय कितना शान्त व गम्भीर है। न मानकी इच्छा, न अपमानका भय, न किसी रागकी लगन, न द्वैपकी जलन, न भूख-प्यासकी परवाह, बल्कि शरीरके रहने जानेकी भी चिन्ता नही । न किसीकी,मिन्नत, न खुशामद, न किसीसे कुछ लेना है. और न किसीका कुछ देना है। " हमन है इश्कके भाते, हमनको दौलता क्या रे? - नहीं कुछ मालकी परवाह, किसीकी मिन्नताँ क्या रे? - हमनको खुश्क-रोटी वस, कमरको एक लंगोटी बस ? . सिरे पे एक टोपी बस, हमतको इजाताँ क्या रे? . कबा-शाला वजीरोको, जरी-जरवक्त, अमीरोंको ? हमन जैसे फकीरोको, जगत्की नेमता क्यारे१ . कड़वापन तो विषयोमें आसक्त हुए मनके सम्बन्धसे ही था, इसने तो सारे ही विषको धो डाला है। ___ मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः । - बन्धाय विषयासक्त मुक्त्यै निर्विषयं स्मृतम् ॥ अर्थात् मन ही मनुष्योंके लिये बन्ध-मोक्षका हेतु है, विषयों मे फसा हुआ मन ही बन्धनका और विषयोंसे छूटा हुआ मन ही मोक्षका-हेतु है। .... " ____यह तो बड़ा शूरवीर है ! बड़ेसे बड़े योधाके लिये भी मनपर , जय पाना महान कठिन है, परन्तु इसने तो मनपर विजय पाई । है। अव तुम ही कहो कड़वा वैराग्य या कड़वा- संसार जिस वैराग्यके प्रभावसे सर्व सांसारिक आसक्तिरूप विप धोया गया,
SR No.010777
Book TitleAtmavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShraddha Sahitya Niketan
Publication Year
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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