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________________ आत्मविलास ] [१०२ द्वि० खण्ड रही है। प्राशय यह कि केवल इस प्रकार बढ़े-बढ़े रजोगुणद्वारा देशकी उन्नति नहीं हो सकती। यद्यपि इस रजोगुणका रहना भी स्वाभाविक है, तथापि इसके साथ-साथ शान्ति स्थापन करतेवाला सात्त्विक त्याग भी आवश्यक है। याद रखिये, 'अपने वढे-चढ़े रजोगुणके कारण वर्तमानमें आप लोग इस त्यागका अनादर भले ही करे, परन्तु कभी न कभी इस रजोगुणके खलास हो जानेपर भापमेसे प्रत्येकको त्यागकी भेंट चढ़नी पडेगी और इस शिवस्वरूपके सामने नतमस्तक होना पड़ेगा। यह बात निश्चित है कि शारीरिक बल आसुरी वल है और मानसिक व आत्मिक बल देवी बल है तथा लोक-परलोककी सभी सफलताएँ देवी वलसे ही सम्पादन की जा सकती है, न कि आसुरी बलसे। भगवान वशिष्टके एकमात्र ब्रह्मदण्डसे जब विश्वामित्रकी सम्पूर्ण संना हताश हो गई तब विश्वामित्रके मुखसे स्वभाविक ही यह उद्गार निकल पडा: धिग्त्रलं क्षत्रियवलं ब्रह्मतेजो बलं बलम् । एकेन ब्रह्मदण्डेन सर्वास्त्राणि हतानि मे ॥ अर्थात् क्षत्रिय वलको धिकार है, ब्रह्मतेजका बल ही एकमात्र चल है, जिस एक ब्रह्मदण्डद्वारा मेरे सारे अक्ष कट गये। अपने केवल मानसिक बलके प्रभावसे प्रह्लादने हरिण्यकशिपुकी सारी शक्तियोंको कुण्ठित कर दिया था। आप अपनी तमोगुणी शक्तियोको बढाकर कैसे सफलता प्राप्त कर सकेंगे। सत्पुरुषांक प्रति और त्यागस्प सन्यासके प्रति द्वेप तो कोरा तमोगुण है। प्रकृतिका यह नियम है कि द्वेपसे शक्ति क्षीण होती है और त्याग से वलपृद्धि, द्वैप तमोगुणमूलक है और त्याग सत्त्वगुणमूलक, इसलिये सर्व शक्तियोंका भण्डार केवल सत्त्वगुणी त्याग ही है। प्रत्येक व्यक्ति अपने निजी अनुभवसे इसको प्रमाणित कर सकता
SR No.010777
Book TitleAtmavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShraddha Sahitya Niketan
Publication Year
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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