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________________ आत्मविलास . [१०६ वि० खण्ड का मार्ग निरोध करनेमे । इस प्रकार मनु व उपनिषद्वाक्यको मंगति त्यागमे ही है। 'प्रवृत्तिसा भूतानां निवृत्तिस्तु महाफलाः। (मनु) अर्थात् जीवोकी प्रवृत्ति भोगोमे स्वाभाविक है, परन्तु निवृत्ति महाफलरूप है। हाँ, जो नवयुवक देशसेवादि शुभ प्रवृत्तिपरायण हैं उनके देशभक्त नवयुवको । लिये यह प्रवृत्ति उत्तम है। परन्तु हमारा से विनती । उनके प्रति इतना ही परामर्श है कि निवृत्ति से वे घणा न करें और अपना द्वेपभाव न उगलें। इससे तो उनकी अपनी प्रवृत्ति भी अशुभ-प्रवृत्ति हो जायगी और उनमे देवी मानसिक वलवृद्धि होने के बजाय आसुरी पाशविक वल ही रह जायगा, जिससे उनको न इहलौकिक सफलता प्राप्त होगी और न पारलौकिक । अपनेसे भिन्न अधिकारी निवृत्तिपरायण पुरुपोके प्रति चिप उगलकर वे अपनी ही हानि करेंगे। उनको ध्यान रखना चाहिये कि निवृत्तिपरायण पुरुपोद्वारा उनके देशका हास नहीं हो सकता। हाँ, उनके प्रति द्वेप करनेसे देशका ह्रास होना अवश्य सम्भव है। किसी भी शरीरके स्वास्थ्यके लिये यात, पित्त और कफ तीनो दोपोकी समता बनाना जरूरी है, कोई एक घोप प्रवल हुआ कि शरीरके स्वास्थ्यमें बांधा श्रार। इसी प्रकार किसी भी देशकी उन्नतिके लिये सत्व, रज और तम तीनों गुणोंकी समता वनाना परमावश्यक है। यदि आप रजो. गुग्णकी ही घृद्धि करते रहें और सत्त्वगुणके साधन निवृत्तिपरायण पुरुपोंसे द्वेपकी वृद्धि करते रहे, तो उल्टा श्राप देशकी आत्मा के हन्ता बन जाएँगे जिम प्रकार प्राणोंके विना शरीरकी स्थिति असम्भव है, उसी प्रकार सत्त्वगुणी त्यांग प्रायस्प है, इसके
SR No.010777
Book TitleAtmavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShraddha Sahitya Niketan
Publication Year
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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