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________________ आत्मविलास] जा सकता है। इसके विना केवल संसारको हिलानेकी चेष्टा करना प्रमाद है, वह हिल नहीं सकेगा। दृष्टान्तस्थलपर समझ सकते हैं कि मेज या चारपाई जो आपके पास पड़ी हुई है, यदि ओप इसको हिलाना चाहते हैं तो आप इसका वह भाग जो आपके निकटतर है पकड़कर खैरे, ऐसा करनेसे इसके समप्र -भाग हिल जायेंगे। इसके विपरीत यदि आप इसके निकटतर भागको छोड़ परले भागपर हाथ डालेगे तव आप इसको हिला नं सकेगे। ठीक, यही अवस्था ससारके सम्बन्धमें है। संसारका सबसे निकटतर भाग अपना हृदय है, इसको हिलाकर संसारको अवश्य हिलाया जा सकता है। भगवान् बुद्ध, शङ्कर, नानक, कवीर आदि इसके ज्वलन्त दृष्टान्त हैं। वे सब अपना सुधार करके ही, अपने श्रापको आदर्शरूप बनाकर ही संसारका सुधार कर पाये थे, इसके बिना नहीं। यह वात विज्ञानद्वारा प्रमाणित है कि एक स्थानकी वायु सूर्यतापसे हलकी होकर जब ऊंची उठ जाती है और अपना स्थान खाली कर देती है, तब वह आप ऊची उठकर और अपना स्थान खाली करके सम्पूर्ण ब्रह्माण्डवायु मे खलबली उत्पन्न कर देती है और उस खाली स्थानके भरनेके लिये सब ओरसे अपने-आप ब्रह्माण्डवायुमे हल-चल मच जाती है। ठीक, इसी प्रकार अधिकारी जब अपने आत्मप्रकाशके तापसे । सूक्ष्म होकर परिच्छिन्न-अहङ्कारसे ऊँचा उठ जाता है, तव ससार में उसका अनुसरण करने के लिये और उसकी खाली जगह घेरने के लिये स्वाभाविक ही हत-चल उत्पन्न हो जाती है। .. · तन छक मन छक वैन छक, नयन रहे मण्डराय। छकी दृष्टि जापर पड़े, रोम रोम छक जाय ॥ । जव कि ठोस सत्य यही है कि अपने-आपका सुधार करना 'और अपने श्रापको आदर्शरूप सिद्ध करना ही संसारका सुधार
SR No.010777
Book TitleAtmavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShraddha Sahitya Niketan
Publication Year
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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