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________________ आत्मविलास] [६ की कल्पना करके उपयुक्त रीतिसे इस मतका निराकरण किया गया। यदि तत्त्वदृष्टिसे देखा जाय तो 'योग' व 'सख्या भिन्नभिन्न मार्ग नहीं है । वस्तुतः 'योग' शब्दका अर्थ न 'निष्कामकर्म अथवा प्रवृत्तिमार्ग ही है और 'सांख्य' शब्दका अर्थ न कर्मत्यागरूप निवृत्ति हो है, बल्कि दोनो एक ही हैं और परस्पर दोनों की सङ्गति लगाना ही गीताका उद्देश्य है। अपने साक्षीस्वरूप आत्मामें अभेदरूपसे स्थिति पाना ही 'योग' है, तथा तत्वसाक्षात्कारद्वारा कर्तृत्वाभिमानसे मुक्त होकर और कर्तव्यसे छूटकर सब कुछ करके भी कुछ न करना ही 'सांस्य' है। इस विषयका विस्तारसे विवरण 'गीता-दर्पण'* की प्रस्तावनामें हमारे द्वारा किया गया है, जिनको जिज्ञासा हो वे वहाँ देखें। तितक-मतका छटा अङ्क कि 'अहवार छुटनेसे में मेरी तिलक-मतके पठ, मापा नहीं रहती, उसके बदले ज्ञानी अंकका निराकरण । 'जगत् व जगत् का अथवा भक्तिपक्षमें 'ईश्वर व ईश्वरका यह व्यवहार होता है' इत्यादि । इसका समाधान हमारे समाधानके अङ्कन० २ मे पृ. १८ से २२ पर आ चुका है, इसलिये पुनरुक्ति निष्प्रयोजन है। अब हम तिलक-मतके सातवें असपर पाते हैं। इस अङ्कमें तिलक मतके सप्तम | तिलक महोदयका कथन है कि 'लोकोको अंकका निराकरण (खोटी प्रवृत्तिसे बचाकर शुभ प्रवृत्तिमें लगाना लोकसंग्रह है और ज्ञानियोके गृहस्थमें रहनेसे लोकसंग्रह अधिक होता है !! - स्यह अन्य 'म गणपतराम गंगाराम शराफ नया बाजार, अजमेर के पतेसे मिल सकता है। ..... M
SR No.010777
Book TitleAtmavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShraddha Sahitya Niketan
Publication Year
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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