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________________ आत्मविलास ] को उत्पन्न करेगा ? क्या वह जिसमे हमारा व्यक्तिगत स्वार्थ भरा हुआ है ? नहीं, नहीं, स्वार्थमूलक राग पुण्यका हेतु कैसे हो सकता है ? वह तो पापरूप ही है। वही राग पुण्यरूप होगा, जिसमे हमारा व्यक्तिगत स्वार्थाश छूटा हुआ हो और जितने अशमे इस स्वार्थका अधिक त्याग होगा उतने ही अधिक अंश मे वह पुण्यरूप भी होगा। तथा कानसा द्वीप पापको उत्पन्न करेगा? क्या वह दुप, जिसमें हमारे स्वार्थका परित्याग है ? नहीं, ऐसा द्वीप तो पुण्यरूप होना चाहिये। वही द्वीप पापरूप होगा, जिसमें हमारे व्यक्तिगत स्वार्थ का लगाव है। इस विषय को दृष्टान्त स्थल पर स्पष्ट किया जाता है। . चोरी, जारी और हिंसा, तीन ही कर्म मुख्य पापके जनक हैं, और निदित कर्म इनके अन्तर्गत ही पा सकते हैं। अब इन तीनों का भिन्न-भिन्न विचार किया जाता है। चोरी-चोरीमें राग पापरूप है और चोरीसे द्वप पुण्यरूप है, यह सभी शास्त्रोंका मत है। ऐसा क्यों ? इसीलिये कि चोर-कर्म दुष्ट स्वार्थमूलक है । परंतु यदि चोरीका ऐसा कोई दृष्टान्त मिले जिसमे स्वार्थत्यागका सवध हो तो वह अवश्य पुण्यरूप होगा । महर्षि विश्वामित्र के लिये १२ वर्षके दुष्काल के कारण कुत्ते के निकृष्ट भागके मांसकी चोरी, वह भी चांडाल के घरसे, पुण्यरूप हुई। क्यों ? इसीलिये कि इस अमक्ष्यभक्षणके द्वारा शरीरकी स्थितिमे उनका उद्देश्य भोगपरायण नहीं था, बल्कि परमोपकार-परायण था । परमोपकारके अन्य पुरुपोंके इहलौकिक प्रेयसाधनको 'परोपकार' कहते है, सधा भन्य पुरुषोंका पारलौकिक श्रेयसाधन करना 'परमोपकार' कहा जाता है। -
SR No.010777
Book TitleAtmavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShraddha Sahitya Niketan
Publication Year
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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