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________________ [आत्मविलाम अर्थ-जो स्थान सांख्योंद्वारा प्राप्त किया जाता है वही योगियोंद्वारा गमन किया जाता है, इसलिये जो पुरुष सांख्यको और योगको एक देखता है, वही देखता है। इस लोकसे विलक महोदयने यह सिद्ध किया है कि 'ज्ञान', (साख्य) से जो मोक्ष मिलवा है वही 'कर्म' (योग) से, 'कर्म'शान' का पूर्वांग नहीं, मोक्षष्टिसे यह दोनों तुल्यबलवाले और स्वतन्त्र हैं। परन्तु उनका यह विचार ठीक नहीं है, जैसे रात व दिन परस्पर विरोगी हैं इकट्ठे नहीं रह सकते, उसी प्रकार सांख्य (निवृत्तिमार्ग) व 'योग' (प्रवृत्तिमार्ग) परस्पर विरोधी है। प्रवृत्ति (ग्रहण) व निवृत्ति (त्याग) परस्पर विरोधी पदार्थों को स्वतन्त्र य तुल्यबल कोई भी बुद्धिमान् नहीं मान सकता। हाँ, कालभेदसे दोनो उपयोगी बनाये जा सकते हैं, परन्तु एक ही अधिकारीमें एक ही कालमें परस्पर विरोवी साधनोंको स्वतन्त्र व तुल्य घलयाले निश्चय करना ऐसा हो प्रमादजनक होगा, जैसे कोई वैध अपने रोगीके लिये एक ही कालमें परस्पर विरोधी रेचक ध पाचक दोनों प्रोपधियोंको स्वतन्त्र व तुल्यबल तजवीज करे। भगवान ऐसे भ्रान्तचित्त नहीं थे। साधारण बुद्धिका मनुष्य भी इसपर श्रद्धा नहीं कर सकता। हाँ, 'सांख्या व 'योग' में लक्ष्यके अभेद करके, कि वे दोनों क्रम-क्रमसे एक ही लक्ष्यको भेदन करनेवाले है, एकत्ता स्थापन की जा सकती है। दोनोंको समकालीन और स्वतन्त्र साधन मानकर एकता बनाना सर्वथा अयुक्त है। जिस प्रकार लाहौरसे दिल्ली जानेवाले दो भुमाफिर, एक गाजियाबादमें है और दूसरा सहारनपुरमें, वे दोनों एक ही स्थानको प्रास होनेवाले है और दोनोका मार्ग भी एक ही हैं, इसलिये उन होनाका अभेद है । परन्तु लक्ष्यका अभेद रहते हुए भी मखिलोंका भेद अवश्य मानना पड़ेगा। एक अपने स्थानको एक ही दिनम
SR No.010777
Book TitleAtmavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShraddha Sahitya Niketan
Publication Year
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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