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________________ [२३. साधारण धर्म पी नहीं, चाहे उसकी कामना परमार्थसम्बन्धी है परन्तु कामना ही। द्वतीय इस मतके अनुसार मोक्ष नकद नहीं, बल्कि मृत्युके पश्चात् उधार है, और प्रत्यक्ष नही किन्तु अनुमानजन्य है । जब जीतेजी मोक्ष न मिला और कर्तव्यके बन्धनमें घिसटते फिरे तो मरकर मोक्ष मिलेगा इसका क्या निश्चय किया जाय? क्योंकि अनुमानजन्य विषयोमें भ्रमका होना बहुत कुछ सम्भव है। जैसे दूर देशमें धूलि पटलरूप हेतुसे अग्निरूप साध्यका अनुमान किया जाय, तो पक्षमें साध्य अगिकी प्राप्तिका । असम्भव ही रहता है । (अर्थात् दूरदेशमें धूल के बादलोमें धूचॉका भ्रम करके हम अग्निका अनुमान करें तो हमारा वह अनुमान भ्रममूलक ही होता है।) इसके विपरीत वेदान्त-सिद्धान्तमे तो ज्ञानी सब कामनाओं रे मुक्त है । जिसकी मोक्षकामना भी परमानन्दकी प्राप्तिद्वारा छुट जाय वही ज्ञानी है। साथ हो मोक्ष उधार नहीं, बल्कि नकद है। जिस प्रकार 'दशम' के ज्ञानसे दशम-पुरुष अपने-आपको उत्काल नकद पा जाता है, (इस विषयमे पीछे पृ.७,८ पर नाथा कह आये हैं) उसी प्रकार ज्ञानी ब्रह्म-ज्ञानसे अपने ब्रह्मवरूपको साक्षात नकद प्राप्त कर लेता है । गीता भी इसकी साक्षी देती है:इहैव तैर्जितः सों येषां साम्ये स्थितं मनः। निर्दोष हि समं ब्रह्म तस्मादब्रह्माणि ते स्थिताः ॥ (अ.५१६) अर्थात् जिनका मन ब्रह्मरूप समत्वभावमें स्थित है, उनके द्वारा जीवित अवस्थामें ही संसार जीत लिया गया (अर्थात् वे
SR No.010777
Book TitleAtmavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShraddha Sahitya Niketan
Publication Year
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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