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________________ लक्षण . । [ पुण्य-पाप की व्याख्या सकती है ?, इसलिये दुःख व सुखका मूल कारण जो पाप व पुण्य है, उनका तत्त्व यथार्थ रूपसे जानना आवश्यक है वास्तविक रहस्यको जाने विना बहुत-सी भूलोंका होना सम्भव है। यद्यपि शाखांमें यह विषय अनेक इतिहासों व दृष्टान्तों से स्पष्ट हुआ है, फिर भी यह विषय बड़ा गहन है । 'गहना कर्मणो गतिः। यक्षके प्रश्न पर युधिष्ठरने कहा है :- . | तर्कोऽप्रतिष्ठः श्रुतयो विभिन्नाः धर्मका निर्णय और निविध बुद्धि के नैको मुनिर्यस्य वचः प्रमाणम् । धर्मस्य तत्त्वं निहितं गुहायां, . महाजनो येन गतः स पन्थाः ॥ ( महाभारत, वनपर्व) भावार्थ:-धर्मका मार्ग कैसे निर्णय किया जाय ? इस विषय मे-युधिष्ठिर महाराज कहते हैं किः। तर्क अर्थात् दलील अनिश्चित है, इसीसे धर्मका निर्णय नहीं हो सकता, क्योंकि जो जितना बुद्धिमान होगा वह दूसरेकी युक्तियोंको बुद्धिवलसे. काट सकता है। श्रुति भी भिन्न र हैं, इस लिये केवल श्रुतिके आधार पर भी धर्मका निर्णय नहीं हो सकता। मुनि भी अनेक हुए हैं और उनके वचनोंमें भी भेद है तथा ऐसा कोई मुनि नहीं जिसका वचन प्रमाणभूत न हो। अतः धर्मका तत्त्व शुद्धसात्त्विकवुद्धिरूपी गुहामें स्थित है, अर्थात् सात्त्विकी बुद्धिद्वारा वेद व मुनियोंके वचनके अनुकूल तर्ककी संगति लंगाकर श्रेष्ठ पुरुष जिस मार्गसे गये हैं, वहीं धर्ममार्ग हो सकता है। श्राशय यह है कि (१) वेद, (२) मुनियों का वचन, (३) श्रेष्ठ पुरुपोंका व्यवहार (४) और शुद्ध सात्त्विकबुद्धिद्वारा
SR No.010777
Book TitleAtmavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShraddha Sahitya Niketan
Publication Year
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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