SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 301
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 00 वसिष्ठ प्रथम हो सकता है. श्रीकृष्ण-उद्धव साधारण धर्म] । अर्थ.--अज्ञानरूप भ्रान्ति करके प्रतीयमान संसार ज्ञानसे ही निवृत्त हो सकता है, कर्मसे कदापि नही । जैसे रज्जुमें प्रान्तिजन्य सर्प घण्टा-घोषसे निवृत्त होना असम्भव है। । ऐसा जो सूक्ष्म पदार्थ, जहाँ ज्ञानके भी पर जलते हैं, उसको स्थूल कमद्वारा प्राप्त करनेकी चेष्टा करना तो कोरा प्रमाद ही है। विषय गहन है इस लिये रीतिमात्र जनाई गई है। अनेक वेदान्त-प्रन्थ इस सिद्धान्तको सत्यतामें प्रमाण हैं, परन्तु तिलक महोदयने अपने अन्थमे योगवाशिष्ठके अनेक स्थलोंमें प्रमाण दिये हैं। इसलिये योगवाशिष्ठ उत्पन्ति-प्रकरण प्रथम सर्ग ही देखिये, जहाँ अपने उपदेशका प्रारम्भ करते ही भगवान वसिष्ठ प्रथम इसी विषयको स्पष्ट करते हैं कि मोक्ष,फेवल ज्ञान से ही प्राप्त हो सकता है, फर्मसे, कदापि नहीं। यही बात श्रीमद्भागवत एकादश-स्कन्धमें श्रीकृष्ण-उद्धव सम्वादके प्रसंग में अध्याय ५,८,९,१०,११,१२,१३ में कही गई है। यह धाओं तो तिलक महोदयको भी स्वीकृत ही होगी कि गीताके कृष्ण और भागवतके कृष्ण दो नहीं, एक ही हैं। स्वयं गीतामें भगवान् अजुनके प्रति ज्ञानकी महिमा मुक्तकण्ठसे यूं वर्णन करत हैं:--'सब यजोंसे ज्ञान-यन श्रेष्ठ है, 'ज्ञानमें अखिल कर्म ममाप्त हो जाते हैं। (गीता. अ.-४ श्लो. ३३) । 'यदि तू महापापी भी है तो भी ज्ञानरूप नौकाद्वारा उन सब पापोंसे भली प्रकार तर जायगा (गी: अ. ४ श्लो: ३६) । 'सव कोंको ज्ञानामिं इसी प्रकार भस्म कर देती है. जैसे स्थूल अनि इधनको जलाकर भस्मीभूत कर देती है. (गी. ४. ३७)। 'ज्ञानके समान कोई वस्तु मंसारमें पवित्र नहीं है। (गी. ४.३८)। यदि,भगवानके मतसे कम मोक्षाप्राप्तिमें, स्वतंत्र साधन होता तो भगवानको इस स्थल पर स्पष्ट कहना चाहिये था, 'कर्मके समान कोई वस्तु पवित्र
SR No.010777
Book TitleAtmavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShraddha Sahitya Niketan
Publication Year
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy