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________________ २६३] [ साधारण धर्म इस विषयमें जबतक उसको आश्वासन न मिल जाय कि जो कुछ मैं करूँगा निष्फल नहीं होगा, उसका कदम उठना कठिन होता है। इसलिये वह भगवानसे ही इस विषयमे आश्वासन चाहता है और कहता है कि आपके सिवाय इस संशयका छेदन करनेवाला मैं नहीं पाता)। इसके समाधानमे भगवान् आज्ञा करते हैं:____ पार्थ नैवेह नामुत्र विनाशस्तस्य विद्यते । - न हि कल्याणकृत्कश्चिदुर्गति तात गच्छति ।। • प्राप्य पुण्यकृतां लोकानुषित्वा शाश्वतीः समाः । शुचीनां श्रीमतां गेहे योगभ्रष्टोऽमिजायते ।। अथवा योगिनामेव कुले भवति धीमताम् । एतद्धि दुर्लभतरं लोके जन्म यदीदृशम् ॥ , तत्र तं बुद्धिसंयोग लभते पौर्वदेहिकम् । यतते च ततो भूयः संसिद्धौ कुरुनन्दन ।। पूर्वाभ्यासेन तेनैव हियते धनशोऽपि सः। जिज्ञासुरपि योगस्य शब्दब्रह्मातिवर्तते ।। प्रयत्नाद्यत्मानस्तु योगी संशुद्धकिल्विषः । 'अनेकजन्मसंसिद्धस्ततो याति पर गतिम् ।। (६.१०.१५) अर्थ:-हे पार्थ ! ऐसे पुरुषका न तो इस लोकमे और न परलोकमे ही नाश होता है, क्योंकि प्यारे । मंगवदर्थ शुभकर्म करनेवाला कोई भी पुरुष दुर्गतिको प्राप्त नहीं होता है। किन्तु वह योगभ्रष्ट पुरुष पुण्यवानोंके लोकोंको प्राप्त होकर और चिरकालतक उनमे वास करके फिर पवित्र श्रीमानोंके
SR No.010777
Book TitleAtmavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShraddha Sahitya Niketan
Publication Year
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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