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________________ २०३ ] [साधारण धर्म हो जाना, (२) मनके अन्दर भी भक्तिरूपी रस भर जाना और ३) मनका परमात्माके स्वरूपमें गलित हो जाना। ___ उपर्युक्त रीतिसे प्रतिमाका वास्तविक रहस्य कथन किया गया। शेषमें प्रतिमापूजन ध्यानरूप है और ध्यान सगुण व निर्गुण भेदसे दो प्रकारका है । पञ्चदेव मूर्तियोंमें निर्गुणभाव क्या है ? यह तो आगे चलकर स्पष्ट करेंगे, उसपर मनन करने से निर्गुणध्यानका स्वरूप विदित होगा। परन्तु जो पुरुष अभी सगुणके ही अधिकारी हैं, जिनकी सगुणमें ही प्रीति है और जिन सगुण-भगवान्के श्रवण, कीर्वन व स्मरणद्वारा पहले जिस रूपमे मनका प्रेम हुआ है तथा मन अपने टिकाक्के लिये उसी रूपका आलम्बन चाहता है, उन पुरुपोंके निमित्त सगुणध्यानके लिये उस इष्टदेवकी मूर्ति ही इष्टदेवरूप है । इसका फल यह है कि स्मरणद्वारा जो रूप हृदयमे धारण किया गया था, वह यहाँतक अर्चन, पूजन व ध्यानद्वारा हृदयमें दृढ हो जाय और नेत्रोंमें वस जाय कि प्रत्येक पदार्थमें वही रूप दृष्टि आने लगे। क्योंकि दृष्टिमय ही संसार है, जैसी जिसकी दृष्टि परिपक होती है वैसा ही दृश्य उसे सम्मुख भान होने लगता है । जिस प्रकार शरदपूर्णिमाको रासलीलाके समय जव भगवान् गोपियोंकी ऑखोंसे ओझल हो गये, तव वही रूप ऑखोंमें बस जानेके कारण गोपियाँ प्रत्येक पदार्थको कृष्णरूपसे ग्रहण करने लगीं। यही सगुण रूपसे प्रतिमापूजनका मुख्य उद्देश्य है, जिसके द्वारा तन-मनसे अपना अधिकार दूर हो जाता है और रजोगुणके गलित हो जानेके कारण निर्गुण-ध्यानका वास्तविक अधिकार प्राप्त होता है। 1, पत्रदेव नाम:-विष्णु, शिव, गणेश, शक्ति और सूर्य ।
SR No.010777
Book TitleAtmavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShraddha Sahitya Niketan
Publication Year
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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