SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 221
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [साधारण धर्म नाम जीह जपि जागहिं योगी । चिरति विरचि प्रपञ्च वियोगी ॥ ब्रह्म सुखहि अनुभवहि अनूपा । अकथ अनामय नाम न रूपा ॥६॥ नामको ही जीभसे जपकर वे योगी, जो ब्रह्माके रचे हुए प्रपञ्चसे वैराग्यवान हैं, अपने आत्मस्वरूपमें जागते हैं और उस अनुपम ब्रह्मसुखका अनुभव करते हैं, जो अकथनीय निर्विकार और नामरूपसे रहित है । जाना चहहिं गूढ गति जेऊ । नाम जीह जपि जानहिं तेऊ ॥ साधक नाम जपहिं लव लाये । होहिं सिद्ध अणिमादिक पाये ७॥ जो इस गूढ गतिको जानना चाहें वे जीमसे नाम जप कर जान सकते हैं। जो साधकपुरुष लव लगाकर नामजाप करते हैं, वे अणिमादि सिद्धियोंको पाकर सिद्ध हो जाते हैं ।।७।। जहि नाम जन भारत भारो । मिटहिं कुसंकट होहिं सुखारी ॥ राम भक्त । जग चारि प्रकारा । सुकृति चारित अनघ उदारा।। ८॥ जो आतभक्त नामका जाप करते हैं वे भारी संकटसे छूट कर सुखी हो जाते हैं। इस प्रकार रामके भक्त संसारमे चार
SR No.010777
Book TitleAtmavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShraddha Sahitya Niketan
Publication Year
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy