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________________ १८५] [ साधारण धर्म श्रीगोस्वामी तुलसीदासजी, श्रीदादूदयालजी, श्रीरामदासजी और श्रीरामचरणजी आदि ने अपने-अपने अनुभवके उद्गार नाम की महिमा चित्ताकर्षक रूपसे प्रकट किये हैं और ग्रन्थ के ग्रन्थ नामके गुणानुवादमे भर दिये हैं। संसारमें 'नाम' और 'रूप' अर्थात् 'शब्द' और 'अर्थ' दो ही पदार्थ हैं। 'नाम' तथा 'शब्द' पर्याय हैं और 'रूप' तथा 'अर्थ' एक ही वस्तुके द्योतक हैं। यावन् प्रपश्वरूप संसार 'नाम' और 'रूप'के अन्दर ही समा जाता है। 'घट' यह दो अक्षरोंवाला शब्द 'नाम' है और 'घट शब्दका अर्थ जो मृत्तिका-पात्रविशेष वह उसका 'रूप' है। इसी प्रकार सफल प्रपञ्च नाम-रूपके भीतर ही है,नाम-पके बाहर कुछ भी नहीं । विचारसे देखिये तो 'रूप से 'नाम की महिमा अधिक है:- . (१) घटरूपका सम्बन्ध एक घटव्यक्तिसे हो है और घटनामका सम्बन्ध समष्टि घटोंसे है, इस लिये 'रूप से 'नाम' व्यापक है। (२) 'रूप' स्थूल है 'नाम' सूक्ष्म है । अर्थात् 'रूप' विषय है व प्रकाश्य है, 'नाम' विषयी है व प्रकाशक है, इस लिये 'रूप' से 'नाम' सूक्ष्म है। यह नियम है कि स्थूलसे सूक्ष्ममें शक्ति अधिक होती है, जैसे वफसे जलमें और जलसे भापमें वल अधिक होता है। इसी लिये रूपजगत्से नामजगत् अधिक प्रभावशाली है। (३) नाम के विना 'रूप' की सिद्धि हो नहीं सकती, अर्थात् नामके विना हाथमे आई हुई वस्तुके रूपका भी वोध हो नहीं सकता। रूप विशेष. नाम विनु जाने। करतलगत न परहि पहिचाने। किसी व्यक्तिविशेषके मिलनेकी हमको अभिलाषा है और वह हमारे सम्मुख उपस्थित हो भी गया, परन्तु नाम
SR No.010777
Book TitleAtmavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShraddha Sahitya Niketan
Publication Year
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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