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________________ आत्मविलास] [१४६ उसमे आकर्षण शक्तिका प्रादुर्भाव होता है। इसलिये नफलता को उसकी ओर आकर्पित होना पड़ता है। जैसे राग वेगरज होता है, इसलिये सब पदार्थ उसकी ओर अपने आप आर्पित होते है, परन्तु भिखारी गरजमन्द रहता है, इसीलिये उनको मॉगसे भी कोई वस्तु प्राप्त नहीं होती। ___ फलकी इच्छा हमारी कार्यशक्तिको घटाती है और चिन्ता व भयको बढ़ाती है। चिन्ता से उत्साह नष्ट हो जाता है तथा कायरताकी वृद्धि होती है । चिन्तासे ईश्वरमे विश्वाम निकल जाता है, बल्कि चिन्ता ईश्वरके अस्तित्व (मौजूदगी) को ही मिटा देती है। यदि हम ईश्वरके अस्तित्वको मानते होते तो चिन्ताका कोई असर नहीं हो सकता था । यदि हम यह यथार्थ खपसे जानते होते कि जो अन्तर्यामीदेव गर्भवासमें भी, जब कि जीव गर्भरूपी कारागारमे सर्वथा दीन-हीन दशा को प्राप्त था और अपने पुरुषार्थसे एक इश्च भी हिलने-चलनेमें समर्थ न था, यहॉतक कि खानपानके लिये द्वार भी न रखवा था, उस कालमे गर्भस्थ शिशुकी नाभिद्वारा नालरूपी पिच कारीके जरिये उस विचित्र सिविलसर्जन (Civil Surgeon) ने माता के पेटसे रस खींचकर उसका नियमित पाहार वहाँ पहुँचाया है और गर्भसे बाहर निकलते ही माताके स्तनों में दूध इसी प्रकार हाजिर कर दिया है जैसे कोई वादशाह दौरेमें निकलता है तब उसके लिये हाजिरो, लांच (Launch), टिफन (Tiffin), डिनर (Dinner) आदि समय-समयपर उसकी मेज़पर विना मांगे ही हाजिर कर दिये जाते हैं । तया जिस अन्तर्यामीदेवने इसी जीवकी अनन्त योनियोंमे जल, थल, श्राकाश व पाषाणमे भी पालना की है और समय-समयपर इसका पेटिया (रसद) हाजिर कर दिया है, वही देव अव भी सब प्रकार जुम्मेवारी धारे हुए है। तव ऐसे विचारोंकी
SR No.010777
Book TitleAtmavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShraddha Sahitya Niketan
Publication Year
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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