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________________ आत्मविलाम] गया परंतु तगर्न मिल्या नाम-मपनो में अपने प्रार फो उगा क्यों जाने दिया। नगं मत्वना पण गोपए की? एकमात्र मस्यता, जिमका परगागामपन्यथा, पा, माता तुमने मिथ्या माया पदाधम irgी? प्राधिर पा परमात्मा भी तो अपने निधारमा पठायो गन्न दान । नहीं देता। जिम पण मिया माधारी श्यामबन्नी गत्यना प्रदान की जाती है, उनी नगा या फलांगे पार-व्या भारम कर देता है और प्रापिर मानेनेने पिटी करीना इस विषयमे तो का याही गानम प्रकार गरि गयो "अपने प्रिय पदार्थ घोसने परें । तोरस, मार गि पढायाम तुमको छोड़ा तो दुपा दुप्चमे तो घटकारा फिी प्रकार की नहीं। यह तो सभी जानते है कि मुखी घडी एक पाया वरावर बीत जाती है और दुम्सी पी कार ममात लम्बी हो जाती है । मायाकी विचिन्न गति सिमफे प्रमावसे अमत्यमें सत्यबुद्धि, दुःपमें मुन्ननुद्धि या जाती है, अन्यथा विचारके सम्मुग्य तो किसी प्रकार भी यह विषय सुन्वरूप नहीं ठहरते । प्रथम तो इनका उपार्जन बड़ा नांगरूप, शरीर व मन को किसी प्रकार शान्ति नहीं देता, बल्कि जिन माधनांद्वारा यर उपार्जन किये जाते हैं ये तो उस लोक्मती क्या? परलोकम भी यमयातना मुगाये बिना नहीं छोड़ते। धनानि भूमौ परवश्व गोष्ठे मार्या गइद्वारि जनाः श्मशाने। देहश्चितायां परलोकमार्गे कर्मानुगो गच्छति जीव एकः॥ अर्थ. वन भूमिमे ही पड़ा रह जाता है, पशु पशुशालामें ही बंधे रह जाते हैं, स्त्री घरके द्वारपर ही साथ छोड़ देती है, वाँधव लोग श्मशानभूमितक ही साथ जाते हैं और शरीर चिता
SR No.010777
Book TitleAtmavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShraddha Sahitya Niketan
Publication Year
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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