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________________ व्याख्या श्रामविलास ] [६४ इस आशयकी पूर्ति एक पतित्रत व एक पलित्रत द्वारा ही हो सकती है, अन्यथ नहीं । इस प्रकार विषयथा नना भी, जिसका अपने समयपर जीवमें प्रकट होना आवश्यक है, धर्मानुकूल सदुपयोगद्वारा ईश्वरप्राप्तिका साधन बनाई जा सकती है। यही आपके उदार धर्मकी पूर्ण उदारता है । इस प्रकार धार्मिक विषयप्रवृत्ति विपयनिवृत्ति के लिये ही है। निकटवर्ती कालके भक्तशिरोमणि गोस्वामी तुलसीदानजी और सूरदासजी आदि इन सिद्धान्त की मत्यतामें ज्वलन्त दृष्टान्त हैं। धर्मशाबमें विवाहसम्बन्धमें जितनी आज्ञाएँ हैं, वे सामान् या परम्पराद्वारा इसी सिद्धान्तकी पूर्तिके लिये हैं। अच्छा जी ! कुछ भी हो हमारा काम कहना है, कोई माने 'वैताल' शब्दकी तो भला, न मानेंगे तो प्रकृति, फुटवालकी __भॉति चारों ओरसे ठोकर मार-मार श्राप भीवरसे फूक निकला लेगी। अखिर ब्रह्मासे लेकर चिउंटीपर्यन्त प्राणीमात्रके सिरपर जो यह वैताल सवार हो रहा है कि 'हम सुखी हों, और ऐसा मुख मिले जिसका कभी क्षय न हो यह केवल मखौलके लिये ही नहीं है, बल्कि सचमुच पूरा होनेके लिये है । यह वैताल कभी दम न लेने देगा और कभी चैनसे बैठने न देगा, जबतक सौलह आना इस उद्देश्यकी पूर्ति करा न ले, चाहे कोटि कल्प क्यों न बीत जाएँ। परन्तु मूढ़ पामरपुरुप इस उद्देश्यकी पूर्ति तथा वैतालकी इस पहेलीका उत्तर विषयमोगके द्वारा देकर इसको मखौलवाजी में उड़ाना चाहते हैं, इससे उसका (बैतालका) कमो सन्तोप नहीं होने का। इस विषयमें उनकी गति ठीक उस मदमस्त शराबीकी जैसी है, जो शरावके नशेसे चकनाचूर हो गली-कूचोंमे घूम रहा है और दीवारों व नालियोंसे टकर व चोटें खा-खाकर और सिर फुड़ाफुड़ाकर आखिर अपना नशा उतरवा लेता है। ठीक, इसी
SR No.010777
Book TitleAtmavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShraddha Sahitya Niketan
Publication Year
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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