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________________ प्रात्यविलाम] [६० वन्टरको भॉति थे तो उल्टा अपना हाय प्रोतके चांच में फंसा लोग किमी सद्गुनको शाम जानो, यह तुम्हारे गोरख बन्धेकी की मुलझानका गन्ना पतला देगा। फिरमें तख्तोके बीचमै पनर टोकर तुम्हाग दवा या हाय निकाल देगा, फिर तुम बाजाद ही आनाट हो। तुम तब शरीर से भी प्राजान, इन्द्रिय मे भी भागात, फिर तो नारे नंसारम तुम्हारा ही राम है। सूर्य-चन्द्रमा मन तुम्हारी मेवाके लिये हाजिर हैं. पृथ्वी-नक्षत्र नब तुम्हारी परिकामाके लिय उपस्थित है। परन्तु ननके नाय बंधे रहकर शरीर व इन्द्रियोंस आजाट होना चाहते हो, यह हो कने मकता ? गौका मा जिस प्रकार खटेसे बंधा रहकर रोते बाजाद होना चाहे तो वह कसे हो सकता है। वह तो उल्टा "अपने गले अधिकाधिक बन्धन पाता जायगा। इसी प्रकार मेरी जान ! प्राजाद होना 1. दो पदई एक पढ़े भारी लम्डी को चीरहे थे, पपई लोग अपने कार्यकी सुगमताके लिये धीरे हुए लकीके भागमैं एक पड़ी की मेल ठोक देते हैं, जिससे शेष चिगई शीव्रतासे दो चाय । जप घे लोग मध्याहरे समय भोजन करने को अपने घर गये तय पीपे एक पन्दर भाया । यन्दर स्वभावसे पचल होता ही है, उसने छकादरीके लटेपर घेठकर अपनी चञ्चलता के कारण उस मेखको जारसे ताशा महुत ज़ोरसे सींचनेपर मेख ल्व से निकल गई भार उसका हाथ धीरे हु। दोनों तातोके योचमें फंस गया। छाया फैसना था कि वह पड़ी व्याकुळतासे चिल्लाया, इतनेमें यदई आ गये उन्होंने फिरसे तोके योचमें मेला ठोंककर उसका दपा हुमा हाथ निकाश। इसी प्रकार यह संसाररूपी भारी लकदीका ठोस कहा है, सदगुरु व अच्छास्त्ररूपी दो बढई इस ससाररूपी रटेको चीरनेके लिये उमर हुए है । इस विचारसे कि वह ससाररूपी हा शोनसे व सुगमद्वासे -
SR No.010777
Book TitleAtmavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShraddha Sahitya Niketan
Publication Year
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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