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________________ ८७] [ साधारण धर्म होता है या दुर्वल । हाँ, मखा अन्न खाकर नो वह बलवान हो सकता है, रूखे अन्नसे बल प्राप्त करते करते वह फिर घृतको भी पचानायगा और उससे भी बल प्राप्त कर लेगा,परन्तु अपने अधिकारको स्थिर रखकर । जिस प्रकार बच्चा अपनी माताका स्तनपान करते-करते दाँत निकाल लेता है, फिर अन्न भी खाने लग पड़ता है और कच्चे चने भी चबा लेता है। ठीक, यही व्यवस्था धर्मसम्वन्धमें है। प्रत्येक प्राणी अपने चित्तके अधिकारानुसार धर्मको आचरणमें लाता हुआ 'यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम उस परम धामको प्राप्त कर जाता है, जिससे फिर लौटना नहीं पड़ता। यही स्वधर्मका व्यापक अर्थ है। जहाँ संकीर्णता है वहाँ कृपणता है, जहाँ कृपणता है वहाँ जड़ता है और जहाँ जड़ता है वहाँ चोटोंका पड़ना स्वाभाविक ही है। तथा जहॉ विशालता है वहाँ उदारता है, जहाँ उदारता है वहाँ कोमलता है और जहाँ कोमलता व द्रवता है वहाँ चोटो से क्या सम्बन्ध ? सोना (धातु ) जब ठोस जड़ावस्थाको प्राप्त है तब अहरन व हथोड़की चोटसे बच नहीं सकता। परन्तु अग्निके संयोगसे जब वह द्रवीभूत होगया और अपने अमली स्वभावको प्राप्त होगया, फिर उसका चोटोंसे क्या सम्बन्ध ? वह तो अब सर्वरूप है, जैसे जैसे साँचकी उपाविको प्राप्त होगा, वही रूप धारण करनेको तैयार है । अग्निकं सम्बन्ध विना उसको एक रूपसे दूसरे रूपमे बदलना असम्भव था, अब उसको मनमाने रूपमें बदल सकते हैं। इसी प्रकार जीवके सम्बन्धमें जितनी-जितनी अहकारकी जड़ता है, उतनी-इतनी ही कृपणता है और उतनी-उतनी ही हृदयबेधी दुःखोंकी चोटो का सहना अनिवार्य है। इन चोटोंसे बचनेके लिये तथा जीव से शिवरूपमें बदलनेके लिये जरूरी है कि इसको धर्मरूपी अग्निके संयोगसे कोमल व द्रवीभूत किया जाय । इस उद्देश्य
SR No.010777
Book TitleAtmavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShraddha Sahitya Niketan
Publication Year
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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