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________________ गुणादिपरिचय । 'देवागम' के द्वारा आज भी सर्वज्ञको प्रदर्शित कर रखा है। निश्चयसे वे ही योगीन्द्र (समंतभद्र ) त्यागी (दाता) हुए हैं जिन्होंने भव्यसमूहरूपी याचकको अक्षय सुखका कारण रत्नोंका पिटारा (रत्नकरंडक) दान किया है। समन्तभद्रो भद्रार्थो भातु भारतभूषणः : देवागमेन येनात्र व्यक्तो देवागमः कृतः॥ -पाण्डवपुराण। इस पद्यमें श्रीशुभचन्द्राचार्य लिखते हैं कि " जिन्होंने ' देवागम' नामक अपने प्रवचनके द्वारा देवागमको-जिनेन्द्रदेवके आगमकोइस लोकमें व्यक्त कर दिया है वे 'भारतभूषण' और 'एक मात्र भद्रप्रयोजनके धारक' श्री समंतभद्र लोकमें प्रकाशमान होवें, अर्थात् अपनी विद्या और गुणोंके द्वारा लोगोंके हृदयांधकारको दूर करने में समर्थ होवें।" ___ समन्तभद्रकी भारतीका एक स्तोत्र, हालमें, हमें दक्षिण देशसे प्राप्त हुआ है । यह स्तोत्र कवि नागराजका बनाया हुआ और अभीतक प्रायः अप्रकाशित ही जान पड़ता है। यहाँपर हम उसे भी अपने पाठकोंकी अनुभववृद्धिके लिये दे देना उचित समझते है। वह स्तोत्र इस प्रकार हैं १ इसकी प्राप्तिके लिये हम उन पं० शांतिराजजीके आभारी हैं जो कुछ अर्सेतक 'जैनसिद्धान्तभवन आरा के अध्यक्ष रह चुके हैं। २ 'नागराज' नामके एक कवि शक संवत् १२५३ में हो गये है, ऐसा 'कर्णाटककविचरित' से मालूम होता है । बहुत संभव है कि यह स्तोत्र उन्हींका बनाया हुआ हो; वे 'उभयकविताविलास' उपाधिसे भी युक्त थे। उन्होंने उक सं० में अपना 'पुण्यस्रवचम्पू' बना कर समाप्त किया है।
SR No.010776
Book TitleSwami Samantbhadra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1925
Total Pages281
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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