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________________ NEPAPEp do-to-boctory १ समर्पण-पत्र । 4 श्रीयुत पंडित नाथूरामजी प्रेमी, हीराबाग, बम्बई । मान्य महोदय सुहृद्वर, स्वामी समन्तभद्रके पवित्र जीवन-वृत्तान्तोंको इधर उधर बिखरा हुआ, अन्धकाराच्छन्न और नष्ट होता हुआ देख कर * मुझे खेद होता था। मेरी बहुत दिनोंसे यह इच्छा थी कि मैं " यथाशक्ति उन्हें एक पुस्तकमें संचित और संकलित करूँ । * हालमें, ' रत्नकरण्डक' नामके उपासकाध्ययन (श्रावकाचार) 4 पर एक प्रस्तावना' लिख देनेकी आपकी सातिशय प्रेर। णाको पाकर, उसे लिखते हुए, मैं स्वामीजीके विशेष परिच४ यके लिये उनके इस पावन 'इतिहास' को लिखनेमें समर्थ हो * सका हूँ; इस दृष्टिसे यह आपकी ही प्रेरणाका फल है और आप इसे पानेके मुस्तहक हैं। आपकी समाजसेवा, साहित्यसेवा, ४ इतिहासप्रीति, सत्यरुचि और गुणज्ञता भी सब मिलकर मुझे * इस बातके लिये प्रेरित कर रही हैं कि मैं अपनी इस पवित्र और प्यारी कृतिको आपकी भेट करूँ । अतः मैं आपके ४ करकमलोंमें इसे सादर समर्पित करता हूँ। आशा है आप ४ स्वयं इससे लाभ उठाते हुए दूसरोंको भी यथेष्ट लाभ पहुँचानेका यत्न करेंगे। __ आपका मित्र जुगलकिशोर, मुख्तार। Itch-EADEPEN detococot
SR No.010776
Book TitleSwami Samantbhadra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1925
Total Pages281
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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