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________________ ४६ स्वामी समन्तभद्र। __ इसके सिवाय चन्नरायपट्टण ताल्लुकेके कनड़ी शिलालेख नं० १४९ में, जो शक सं० १०४७ का लिखा हुआ है, समन्तभद्रकी बाबत यह उल्लेख मिलता है कि वे 'श्रुतकेवलि-संतानको उन्नत करनेवाले और समस्त विद्याओंके निधि थे। यथा-- श्रुतकेवलिगलु पलवरुम् अतीतर् आद् इम्बलिक्के तत्सन्तानो-। बतियं समन्तभद्र व्रतिपर् त्तलेन्दरु समस्तविद्यानिधिगल ॥ और बेलूर ताल्लुकेके शिलालेख नं० १७ में भी, जो रामानुजाचार्य-मंदिरके अहातेके अन्दर सौम्य नायकी-मंदिरकी छतके एक पत्थर पर उत्कीर्ण है और जिसमें उसके उत्तीर्ण होनेका समय शक सं० १०५९ दिया है, ऐसा उल्लेख पाया जाता है कि श्रुतफेवलियों तथा और भी कुछ आचार्योंके बाद समन्तभद्रस्वामी श्रीवर्द्धमानस्वामीके तीर्थकी-जैनमार्गकी-सहस्रगुणी वृद्धि करते हुए उदयको प्राप्त हुए । यथा-- श्रीवर्द्धमानस्वामिगलु तीर्थदोलु केवलिगलु ऋद्धिप्राप्तरं श्रुतिकेवलिगलं पलरुं सिद्धसाध्यर् आगे तत्.......र्थ्यमं सहस्रगुणं माडि समन्तभद्र-स्वामिगलु सन्दर्........। इन दोनों उल्लेखोंसे भी यही पाया जाता है कि स्वामी समन्तभद्र इस कलिकालमें जैनमार्गकी-स्याद्वादशासनकी--असाधारण उन्नति १, २ देखो 'एपिग्रेफिया कर्णाटिका ' जिल्द पाँचवीं ( E. C., V.) ३ इस अंशका लेविस राइसकृत अंग्रेजी अनुवाद इस प्रकार है-Increa. sing that doctrine a thousand fold Samantabhadra .swami arose.
SR No.010776
Book TitleSwami Samantbhadra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1925
Total Pages281
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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