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________________ गुणादिपरिचय । दूसरे विद्वानोंकी तो कथा ही क्या है ! उनका अस्तित्व तो समंतभद्रके सामने कुछ भी महत्त्व नहीं रखता।। इस पद्यसे भी समंतभद्रके सामने प्रतिवादियोंकी क्या हालत होती थी उसका कुछ बोध होता है। कितने ही विद्वानोंने इस पद्यमें 'धूर्जटि'को ‘महादेव' अथवा 'शिव'का पर्याय नाम समझा है और इस लिये अपने अनुवादोंमें उन्होंने 'धूर्जटि'की जगह महादेव तथा शिव नामोंका ही प्रयोग किया है। परंतु ऐसा नहीं है । भले ही यह नाम, यहाँपर, किसी व्यक्ति विशेषका पर्याय नाम हो, परंतु वह महादेव नामके रुद्र अथवा शिव नामके देवताका पर्याय नाम नहीं है । महादेव न तो समंतभद्रके समसामयिक व्यक्ति थे और न समंतभद्रका उनके साथ कभी कोई साक्षास्कार या बाद ही हुआ । ऐसी हालतमें यहाँ 'धूर्जटि'से महादेवका अर्थ निकालना भूलसे खाली नहीं है । वास्तवमें इस पद्यकी रचना केवल समन्तभद्रका महत्त्व ख्यापित करनेके लिये नहीं हुई बल्कि उसमें समंतभद्रके वादविषयकी एक खास घटनाका उल्लेख किया गया है और उससे दो ऐतिहासिक तत्वोंका पता चलता है-एक तो यह कि समंतभद्रके समयमें 'धूर्जटि' नामका कोई बहुत बड़ा विद्वान् हुआ है, जो चतुराईके साथ स्पष्ट शीघ्र और बहुत बोलनेमें प्रसिद्ध था; उसका यह विशेषण भी उसके तात्कालिक व्यक्तिविशेष होनेको और अधिकताके साथ सूचित करता है; दूसरे यह कि, ससाकारसके साथ वाद हुआ, जिसमें वह शीघ्र ही निरुत्तर होमिया और उस पर कुछ बोल नहीं आया। पद्यका यह आशय उसके उस समरीन रूपसे और भी ज्यादा स्पष्ट हो जाता है जो, शक सं० १०५ में सरकार हुए, मल्लिषेण
SR No.010776
Book TitleSwami Samantbhadra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1925
Total Pages281
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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