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________________ M गुणादिपरिचय । किसी रोक टोकके पूरी आजादीके साथ विचरती थी और इस लिये समंतभद्र असाधारण विद्याके धनी थे और उनमें कवित्व वाग्मित्वादि शक्तियाँ उच्च कोटिके विकाशको प्राप्त हुई थीं यह स्वतः ही स्पष्ट हो जाता है। साथ ही यह भी प्रकट करते हैं कि उनके वचनरूपी वाके निपातसे प्रतिपक्षी सिद्धान्तरूपी पर्वतोंकी चोटियाँ खंड खंड हो गई थी--अर्थात् समन्तभद्रके आगे, बड़े बड़े प्रतिपक्षी सिद्धान्तोंका प्रायः कुछ भी गौरव नहीं रहा था और न उनके प्रतिपादक प्रतिवादीजन ऊँचा मुँह करके ही सामने खड़े हो सकते थे सरस्वतिस्वैरविहारभूमयः समन्तभद्रप्रमुखा मुनीश्वराः । जयन्ति वाग्वजनिपातपाटितप्रतीपराद्धान्तमहीधकोटयः ।। (९) श्रवणबेलगोलके शिलालेख नं० १०८ में, जो शक सं० १३५५ का लिखा हुआ है और जिसका नया नंबर २५८ है, मंगराजकवि सूचित करते हैं कि समतभद्र बलाकपिच्छके बाद 'जिनशासनके प्रणेता' हुए हैं, वे 'भद्रमृति ' थे और उनके वचनरूपी वज्रके कठोर पातसे प्रतिवादीरूपी पर्वत चूर चूर हो गये थे--कोई प्रतिवादी उनके सामने नहीं ठहरता था समन्तभद्रोजनि भद्रमूर्तिस्ततः प्रणेता जिनशासनस्य । यदीयवाग्वजकठोरपातश्चर्णीचकार प्रतिवादिशैलान् । (१०) समंतभद्रके सामने प्रतिवादियोंकी-कुवादियोंकी क्या हालत होती थी , और वे कैसे नम्र अथवा विषण्ण और किंकर्तव्यविमूढ बन जाते थे, इसका कुछ आभास अलंकार-चिन्तामणिमें उद्धृत किये हुए निम्न दो पोसे मिलता है कुवादिनः स्वकान्तानां निकटे परुषोक्तयः । समन्तभद्रयत्यये पाहि पाहीति सूक्तयः॥ ४-३१५
SR No.010776
Book TitleSwami Samantbhadra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1925
Total Pages281
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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