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________________ परिशिष्ट । २४९ हन राजाके अस्तित्वादि विषयक विशेष बातोंका पता चलाना चाहिये । विबुधश्रीधरके इस श्रुतावतारमें और भी कई बातें ऐसी हैं जो इन्द्रनन्दीके श्रुतावतारसे भिन्न हैं। यहाँपर हम इतना और भी प्रकट कर देना उचित समझते हैं कि, 'त्रिलोकप्रज्ञप्ति' पर लिखे हुए अपने लेखमें, श्रीयुत पं० नाथूरामजी प्रेमीने नरवाहनको 'नहपान' राजा सूचित किया है। परंतु उनका यह सूचित करना किस आधारपर अवलम्बित है उसे जाननेका प्रयत्न करनेपर भी हम अभी तक कुछ मालूम नहीं कर सके आर न स्वयं ही दोनोंकी एकताका हमें कोई यथेष्ट प्रमाण उपलब्ध हो सका है। अस्तु । इसमें संदेह नहीं कि नहपान एक इतिहासप्रसिद्ध क्षत्रप राजा हो गया है और उसके बहुतसे सिक्के भी पाये जाते हैं । विन्सेंट स्मिथ साहबने, अपनी 'अर्ली हिस्टरी ऑफ इंडिया' में नहपानको करीब करीब ईसवी सन् ६० और ९० के मध्यवर्ती समयका राजा बतलाया है और पं० विश्वेश्वरनाथजी, 'भारतके प्राचीन राजवंश' में उसे शककी प्रथम शताब्दीके पूर्वार्धका राजा प्रकट करते हैं। नहपानके जामाता उषवदात (ऋषभदत्त ) का भी एक लेख शक सं० ४२ का मिला है और उससे नहपानके समयपर अच्छा प्रकाश पड़ता है। हो सकता है कि नहपान और नरवाहन दोनों एक ही व्यक्ति हों परन्तु ऐसा माने जानेपर त्रिलोकप्रज्ञप्ति आदिमें नखाहनका जो समय दिया है उसे या तो कुछ गलत कहना होगा और या यह स्वीकार करना पड़ेगा कि ' त्रिलोक १ देखो जैनहितैषी, भाग १३, अंक १२, पृष्ठ ५३४ । २ देखो तृतीय संस्करणका पृ० २०९।
SR No.010776
Book TitleSwami Samantbhadra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1925
Total Pages281
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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