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________________ २३२ स्वामी समंतभद्र। टीका भी की है । इस ग्रंथमें परीक्षाद्वारा अर्हन्तदेवको ही इन विशेषगोंसे विशिष्ट और वंदनीय ठहराते हुए, १२० वें नंबरके पद्यमें, 'इति संक्षेपतोन्वयः' यह वाक्य दिया है और इसकी टीकामें लिखा है___" इति संक्षेपतः शास्त्रादौ परमेष्ठिगुणस्तोत्रस्य मुनिपुंगवैविधीयमानस्यान्वयः संप्रदायाव्यवच्छेदलक्षणः पदार्थघटनालक्षणो वा लक्षणीयः प्रपंचतस्तदन्वयस्याक्षेपसमाधानलक्षणस्य श्रीमत्स्वामीसमंतभद्रदेवागमाख्यातमीमांसायां प्रकाशनात्....." इस सब कथनसे इतना तो प्रायः स्पष्ट हो जाता है कि समन्तभद्रका देवागम नामक आप्तमीमांसा ग्रंथ 'मोक्षमार्गस्य नेतारं' नामके पद्यमें कहे हुए आप्तके स्वरूपको लेकर लिखा गया है; परंतु यह पद्य कौनसे निःश्रेयस ( मोक्ष ) शास्त्रका पद्य है और उसका कर्ता कौन है, यह बात अभी तक स्पष्ट नहीं हुई। विद्यानंदाचार्य, आप्तपरीक्षाको समाप्त करते हुए, इस विषयमें लिखते हैंश्रीमत्तत्त्वार्थशास्त्राद्भुतसलिलनिधेरिद्धरत्नोद्भवस्य, प्रोत्थानारंभकाले सकलमलभिदे शास्त्रकारैः कृतं यत् । स्तोत्रं तीर्थोपमानं प्रथितपृथुपथं स्वामिमीमांसितं तत्, विद्यानंदैः स्वशक्या कथमपि कथितं सत्यवाक्यार्थसिद्धथै १२३ इस पद्यसे सिर्फ इतना पता चलता है कि उक्त तीर्थोपमान स्तोत्र, जिसकी स्वामी समंतभद्रने मीमांसा और विद्यानंदने परीक्षा की, तत्त्वार्थशास्त्ररूपी अद्भुत समुद्रके प्रोत्थानका-उसे ऊँचा उठाने या बढ़ानेकाआरंभ करते समय शास्त्रकारद्वारा रचा गया है। परन्तु वे शास्त्रकार महोदय कौन हैं, यह कुछ स्पष्ट मालूम नहीं होता । विद्यानन्दने आप्तपरीक्षाकी टीकामें शास्त्रकारको सूत्रकार सूचित किया है और उन्हीं 'मुनिपुंगव का बनाया हुआ उक्त गुणस्तोत्र लिखा है परन्तु उनका
SR No.010776
Book TitleSwami Samantbhadra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1925
Total Pages281
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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