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________________ २३० स्वामी समंतभद्र। __ " इह हि खलु पुरा स्वकीय-निरवद्य-विद्या-संयम-संपदा गणधर-प्रत्येकबुद्ध-श्रुतकेवलि-दशपूर्वाणां सूत्रकृन्महर्षाणां महिमानमात्मसात्कुर्वद्भिर्भगवद्भिमास्वातिपादैराचार्यवरासूत्रितस्थ तत्वार्थाधिगमस्य मोक्षशास्त्रस्य गंधहस्त्याख्यं महाभाष्यमुपनिवनंतः स्याद्वादविधायगुरवः श्रीस्वामिसमन्तभद्राचार्यास्तत्र किल मंगलपुरस्सर-स्तव-विषय-परमात-गुणातिशय-परीक्षामुपक्षिप्तवन्तो देवागमाभिधानस्य प्रवचनतीर्थस्य सृष्टिमापूरयांचक्रिरे।" इस वाक्य द्वारा, आचार्योंके विशेषणोंको छोड़कर, यह खास तौर पर सूचित किया गया है कि स्वामी समन्तभद्रने उमास्वातिके ' तत्त्वाधिगम-मोक्षशास्त्र' पर 'गंधहस्ति' नामका एक महाभाष्य लिखा है, और उसकी रचना करते हुए उन्होंने उसमें परम आप्तके गुणातिशयकी परीक्षाके अवसरपर 'देवागम' नामके प्रवचनतीर्थकी सृष्टि की है । यद्यपि इस उल्लेखसे गंधहस्तिमहाभाष्यकी श्लोकसंख्याका कोई हाल मालूम नहीं होता और न यही पाया जाता है कि देवागम ( आप्तमीमांसा) उसका मंगलाचरण है, परंतु यह बात बिलकुल स्पष्ट मालूम होती है कि समन्तभद्रका गंधहस्ति महाभाष्य उमास्वातिके 'तत्त्वार्थसूत्र' पर लिखा गया है और 'देवागम' भी उसका एक प्रकरण है। जहाँ तक हम समझते हैं यही इस विषयका पहला स्पष्टोल्लेख है जो अभीतक उपलब्ध हुआ है । परंतु यह उल्लेख किस १ यह प्रस्तावनावाक्य मुनिजिनविजयजीने पूनाके भन्डारकर इन्स्टिटयू. की उस ग्रंथ प्रतिपरसे उधुत करके भेजा था जिसका नंबर ९२० है। १ "मंगलपुरस्सस्स्तवोहि शाखावतार-चित-स्तुतिरुण्यते। मंगलं पुरस्सरमत्वोति मंगलपुरस्सरः शामावतारकास्तत्र रचितः स्तबो मंगलपुरस्सरस्तव इति व्याल्यानात् ।" -असहली।
SR No.010776
Book TitleSwami Samantbhadra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1925
Total Pages281
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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