SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 228
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रन्य-परिचय । २१९ इस उलेखसे स्पष्ट है कि ' चूडामणि ' जिन दोनों (कर्मप्राभूत और कषायप्राभूत ) सिद्धान्त शास्त्रोंकी टीका कहलाती है, उन्हें यहाँ 'तत्त्वार्थमहाशास्त्र' के नामसे उल्लेखित किया गया है। इससे 'सिद्धान्तशास्त्र' और 'तत्त्वार्थशास्त्र' दोनोंकी, एकार्थताका समर्थन होता है और साथ ही यह पाया जाता है कि कर्मप्राभूत तथा कषायप्राभूत ग्रंथ 'तत्त्वार्थशास्त्र' कहलाते थे । तत्त्वार्थविषयक होनेसे उन्हें ' तत्त्वार्थशास्त्र' या ' तत्त्वार्थसूत्र' कहना कोई अनुचित भी प्रतीत नहीं होता। इन्हीं तत्त्वार्थशास्त्रोंमेंसे 'कर्मप्राभूत' सिद्धान्तपर समन्तभद्रने भी एक विस्तृत संस्कृतटीका लिखी है जिसका परिचय पहले दिया जा चुका है और जिसकी संख्या — इन्द्रनंदि-श्रुतावतार' के अनुसार ४८ हजार और 'विबुधश्रीधर-विरचित श्रुतावतार' के मतसे ६८ हजार श्लोक परिमाण है । ऐसी हालतमें, आश्चर्य नहीं कि कवि हस्तिमल्लादिकने अपने उक्त पद्यमें समन्तभद्रको तत्त्वार्थसूत्रके जिस 'गंधहस्ति' नामक व्याख्यानका कर्ता सूचित किया है वह यही टीका अथवा भाष्य हो । जब तक किसी प्रबल और समर्थ प्रमाणके द्वारा, बिना किसी संदेहके, यह मालूम न हो जाय कि समन्तभद्रने उमास्वातिके तत्त्वार्थसूत्रपर ही 'गंधहस्ति' नामक महाभाष्यकी रचना की थी तब तक उनके उक्त सिद्धान्तभाष्यको भी गंधहस्तिमहाभाष्य माना जा सकता है और उसमें यह पद्य कोई बाधक प्रतीत नहीं होता। (२) आराके जैनसिद्धान्त भवनमें ताड़पत्रों पर लिखा हुआ,, कनड़ी भाषाका एक अपूर्ण ग्रंथ है, जिसका तथा जिसके कर्ताका नाम मालूम नहीं हो सका, और जिसका विषय उमास्वातिके तत्त्वार्थाधिगम
SR No.010776
Book TitleSwami Samantbhadra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1925
Total Pages281
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy