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________________ स्वामी समन्तभद्र। कुछ भी कहना नहीं चाहते। हाँ, इतना जरूर कह सकते हैं कि स्वामी समंतभद्रका बनाया हुआ यदि कोई व्याकरण ग्रंथ उपलब्ध हो जाय तो वह जैनियोंके लिये एक बड़े ही गौरवकी चीज होगी। श्रीपूज्यपाद आचार्यने अपने 'जैनेंद्र व्याकरण' में 'चतुष्टयं समंतभद्रस्य' इस सूत्रके द्वारा समन्तभद्रके मतका उल्लेख भी किया है, इससे समंतभद्रके किसी व्याकरणका उपलब्ध होना कुछ भी अस्वाभाविक नहीं है । ९प्रमाणपदार्थ । मूडबिद्रीके 'पडुवस्तिभंडार' की सूचीसे मालूम होता है कि वहाँपर ' प्रमाणपदार्थ ' नामका एक संस्कृत ग्रंथ समंतभद्राचार्यका बनाया हुआ मौजूद है और उसकी श्लोकसंख्या १००० है। साथ ही, उसके विषयमें यह भी लिखा है कि वह अधूरा है । मालूम नहीं, ग्रंथकी यह श्लोकसंख्या उसकी किसी टीकाको साथ लेकर है या मूलका ही इतना परिमाण है। यदि अपूर्ण मूलका ही इतना परिमाण है तब तो यह कहना चाहिये कि समंतमद्रके उपलब्ध मूलग्रंथोंमें यह सबसे बड़ा ग्रंथ है, और न्यायविषयक होनेसे बड़ा ही महत्त्व रखता है । यह भी मालूम नहीं कि यह ग्रंथ किस प्रकारका अधूरा है-इसके कुछ पत्र नष्ट हो गये हैं या ग्रंथकार इसे पूरा ही नहीं कर सके हैं। बिना देखे इन सब बातोंके विषयमें कुछ भी नहीं कहा जा सकता * । हाँ, इतना जरूर हम कहना चाहते हैं कि यदि १ यह सूची आराके 'जैनसिद्धान्त भवन में मौजूद है। * इस ग्रंथके विषयमें आवश्यक बातोंको मालूम करनेके लिये मूडविद्रीके पं० लोकनाथजी शास्त्रीको दो पत्र दिये गये। एक पत्रके उत्तरमें उन्होंने ग्रंथको निकलवाकर देखने और उसके सम्बन्धमें यथेष्ट सूचनाएँ देनेका वादा भी किया था, परंतु नहीं मालूम क्या वजह हुई जिससे वे हमें फिर कोई सूचना नहीं दे सके । यदि शास्त्रीजीसे हमारे प्रश्नोंका उत्तर मिल जाता तो हम पाठकोंको इस ग्रंथका अच्छा परिचय देनेके लिये समर्थ हो सकते थे।
SR No.010776
Book TitleSwami Samantbhadra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1925
Total Pages281
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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