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________________ १९६ स्वामी समंतभद्र। है जो कुन्दकुन्दको भद्रबाहुका शिष्य मानकर तथा विक्रमसंवतको मृत्युसंवत् स्वीकार करके ऊपर बतलाया गया है, अथवा भद्रबाहुको वि० सं०४ में आचार्य पद पर प्रतिष्ठित होनेवाला मान लेने पर नन्दिसंघकी पट्टावलीमें दिये हुए कुन्दकुन्दके समयाधार पर जिसकी कल्पना की गई है। अस्तु। समय-सम्बंधी इस सब कथन अथवा विवेचन परसे पाठक स्वयं समझ सकते हैं कि समन्तभद्रके समय-निर्णय-पथमें कितनी रुकावटें पैदा हो रही हैं क्या क्या दिक्कतें आरही हैं और कैसी कैसी कठिन अथवा जटिल समस्याएँ उपस्थित हैं, जिन सबको दूर अथवा हलकिये विना समन्तभद्रके यथार्थ समय-सम्बन्धमें कोई ऊँची तुली एक बात नहीं कही जा सकती । फिर भी इतना तो सुनिश्चित है कि समन्तभद्र विक्रमकी पाँचवीं शताब्दीसे पीछे अथवा ईसवी सन् ४५० के बाद नहीं हुए; और न वे विक्रमकी पहली शताब्दीसे पहलेके ही विद्वान् मालूम होते हैं-पहलीसे ५ वीं तक पाँच शताब्दियोंके मध्यवर्ती किसी समयमें ही वे हुए हैं । स्थूल रूपसे विचार करने पर हमें समन्तभद्र विक्रमकी प्रायः दूसरी या दूसरी और तीसरी शताब्दीके विद्वान् मालूम होते हैं। परन्तु निश्चयपूर्वक यह बात भी अभी नहीं कही जा सकती। इस समयका विशेष विचार अवसरादिक मिलने पर दूसरे संस्करणके समय किया जायगा । इसमें सन्देह नहीं कि कितने ही प्राचीन आचायाँका समय इसी तरहकी अनिश्चितावस्था तथा गड़बड़ में पड़ा हुआ है और उद्धार किये जानेके योग्य है । समन्तभद्रका समय सुनिश्चित होनेपर उन सभीके समयोंका बहुत कुछ उद्धार हो जायगा। साथ ही, वीरनिर्वाण, विक्रम और शक संवतोकी समस्याएँ भी हल हो जायगी ऐसी दृढ आशा की जाती है। समय-निर्णय-विषयक इस निबन्धको पढ़कर जो विद्वान् हमें निर्णयमें सहायक ऐसी कोई भी खास बात सुझाएँगे उनका हम हृदयसे आभार मानेंगे।
SR No.010776
Book TitleSwami Samantbhadra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1925
Total Pages281
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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