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________________ १८६ स्वामी समन्तभद्र। और क्रम पर एकाएक विश्वास नहीं किया जा सकता । उपलब्ध जैनसाहित्यमें, प्रकृत विषयका उल्लेख करनेवाले प्राचीनसे प्राचीन ग्रंथोंपरसे एकादशांगधारियोंका समय वीरनिर्वाणसे ५६५ वर्ष पर्यंत पाया जाता है । इसके बाद ११८ वर्षमें चार एकांगधारी तथा कुछ अंगपूर्वोके एकदेशधारी भी हुए हैं और इन्हींमें तीसरे नम्बर पर भद्रबाहु द्वितीयका नाम है। इन चारों आचार्योंका, प्राकृत पट्टावलीमें, जो पृथक् पृथक् समय क्रमशः ६,१८,२३, और ५० वर्ष दिया है उसकी एकत्र संख्या ९७ वर्ष होती है । हो सकता है कि इन मुनियोंके कालपरिमाणकी यह संख्या ठीक ही हो और बाकी २१८११८-९७ ) वर्ष तक प्रधानतः अंगपूर्वोके एकदेशपाठियोंका समय रहा हो। इस हिसाबसे भद्रबाहु (द्वितीय ) का समय वीरनिर्वाणसे ५८९ ( ५६५+६+१८ ) वर्षके बाद प्रारंभ हुआ और ६१२ वें वर्ष तक रहा मालूम होता है । अब यदि यह मान लिया जावे-जिसके मान लेनेमें कोई खास बाधा मालूम नहीं होती-कि भद्रबाहुकी समयसमाप्तिसे करीब पाँच वर्ष पहले--बी० नि० से ६०७ वर्षके बादही कुन्दकुन्द उनके शिष्य हुए थे, और साथ ही, पट्टावलीमें जो यह उल्लेख मिलता है कि 'कुन्दकुन्द' ११ वर्षकी अवस्था हो जाने पर मुनि हुए, ३३ वर्ष तक साधारण मुनि रहे और फिर ५१ वर्ष १० महीने १० दिन तक आचार्य पद पर प्रतिष्ठित रहे' उसे भी प्रायः सत्य स्वीकार किया जावे, तो कुन्दकुन्दका समय वीरनिर्वाण ६०८ से ६९२ के करीबका हो जाता है । इस समयके भीतर-वीर नि० से ६६२ वर्ष तक अन्तिम आचारांगधारी 'लोहाचार्य का समय भी बीत जाता है, और उसके बाद २१ वर्ष तकका अंगपूर्वैकदेशधारियोंअथवा अंगपूर्वपदांशवेदियोंका समय भी निकल जाता है, जिसमें अर्ह
SR No.010776
Book TitleSwami Samantbhadra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1925
Total Pages281
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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