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________________ समय-निर्णय । मृत्युका संवत् न होकर उसके राज्य अथवा जन्मका संवत् हो तो पिछले ४१७ संवतमेंसे शकराज्यकाल अथवा उसकी आयुके वर्ष भी कम किये जा सकते हैं। राजा शिवकुमार । 'पंचास्तिकाय' सूत्रकी जयसेनाचार्यकृत टीकामें लिखा है कि श्रीकुण्डकुन्दाचार्यने इस शास्त्रको अपने शिष्य शिवकुमार महाराजके प्रतिबोधनार्थ रचा है, और वही राजा इस शास्त्रको उत्पत्तिका निमित्त है। यथा___ "....श्रीमत्कुण्डकुन्दाचार्यदेवैः.......शिवकुमारमहाराजादिसंक्षेपरुचिशिष्यप्रतिबोधनार्थ विरचिते पंचास्तिकायप्रामृतशास्त्रे........" "अथ प्राभृतग्रंथे शिवकुमारमहाराजो निमित्तं अन्यत्र द्रव्यसंग्रहादौ सोमश्रेष्ठयादि ज्ञातव्यम् । इति संक्षेपेण निमित्त कथितं ।" ग्रंथकी कनड़ी टीकामें भी, जो 'बालचंद्र' मुनिकी बनाई हुई है, इसी प्रकारका उल्लेख बतलाया जाता है। प्रोफेसर के० बी० पाठकने इन शिवकुमार महाराजका समीकरण कदम्बवंशके राजा 'शिवमृगेशवर्मा के साथ किया है. उन्हींको उक्त शिवकुमार बतलाया है और शिवमृगेशका समय, चालुक्य चक्रवर्ती 'कीर्तिवर्मा' महाराजके द्वारा वादामी स्थानपर शक सं० ५०० में प्राचीन कदम्बवंशके ध्वस्त किये जानेसे ५० वर्ष पहलेका निश्चित करके, यह प्रतिपादन किया है कि कुन्दकुन्दाचार्य शक सं० १५० (वि० सं० ५८५ या ई० सन् ५२८ ) के विद्वान् सिद्ध होते हैं । पाठक महाशयके इस मतको पं० गजाधरलालजी न्यायशास्त्रीने,
SR No.010776
Book TitleSwami Samantbhadra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1925
Total Pages281
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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