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________________ समय-निर्णय । वर्ष बाद विक्रम राजाका जन्म होनेकी जो बात कही जाती है वह ठीक नहीं बैठती, अथवा यह कहना पड़ता है कि दोनोंके समयोंमें जो १३५ वर्षका अन्तर माना जाता है वही ठीक नहीं है। ऐसी हालतमें, विक्रमसंवत्को विक्रमका मृत्यु-संवत् न मानकर यदि यह माना जाय कि वह विक्रमकी १८ या २० वर्षकी अवस्थामें उसके राज्याभिषेक समयसे प्रारंभ हुआ है तो, ४७० मेंसे विक्रमके राज्यकाल (६६-६२ वर्षों ) को घटाकर यह कहना होगा कि वह वीरनिर्वाणसे प्रायः ४०८ अथवा जार्ल चाटियरके कथनानुसार, ४१० वर्ष बाद प्रारंभ हुआ है। साथ ही, यह भी कहना होगा कि इस समय वीरनिर्वाण संवत् २३८९ या २३९१ बीत रहा है; और इस लिये उमास्वातिका समय, उक्त पद्यके आधार पर, वि० सं०३६० या ३६२ होना चाहिये अथवा इनमेंसे किसी संवत्को ही उनके समयकी अन्तिम मर्यादा कहना चाहिये, और तदनुसार समन्तभद्रका समय भी वि० सं० ४०० या ४०० तकके करीब बतलाना चाहिये। __इस सब कथनसे पाठक स्वयं समझ सकते हैं कि वीरनिर्वाण संवत्का विषय और विक्रम तथा शक संवतोंके साथ उसका सम्बंध कितनी अधिक गड़बड़ तथा अनिश्चितावस्थामें पाया जाता है, और इसलिये, उसके आधारपर-उसकी गुत्थीको सुलझाये बिना उसकी किसी एक बातको लेकर-किसीके समयका निर्णय कर बैठना कहाँ तक युक्तियुक्त और निरापद हो सकता है। इसमें संदेह नहीं कि वीरनिर्वाण-काल जैसे विषयका अभी तक अनिश्चित रहना जैनियोंके लिये एक बड़े ही कलंक तथा लज्जाकी बात है, और इसलिये जितना शीघ्र बन सके विद्वानोंको उसे पूरी तौर पर निश्चित कर डालना चाहिये । परंतु यह सब काम अधिक परिश्रम और. समय-साध्य होनेके साथ
SR No.010776
Book TitleSwami Samantbhadra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1925
Total Pages281
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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