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________________ समय-निर्णय । १५३ द्वारा यह प्रतिपादन किया है कि महावीरका निर्वाण विक्रमसंवत्से १७० वर्ष पहले नहीं किन्तु ४१० वर्ष पहले हुआ है और इसलिये प्रचलित वीरनिर्वाणसंवत्मेंसे ६० वर्ष कम करने चाहियें। आपकी रायमें महावीरनिर्वाणसे ४७० वर्षबाद विक्रम नामके किसी राजाका अस्तित्व ही इतिहासमें नहीं मिलता। आपकी युक्तियोंका यद्यपि मिस्टर के० पी० जायसवालने खंडन किया है, ऐसा जैनसाहित्यसंशोधक, प्रथमखंडके ४ थे अंकसे मालूम होता है, फिर भी यह विषय अभी तक विवादग्रस्त चला जाता है। वीरनिर्वाणका विषय आजकल ही कुछ विवादग्रस्त हुआ हो सो नहीं, बल्कि आजसे प्रायः १५०० वर्ष पहले भी, अथवा उससे भी कुछ वर्ष पूर्व, वह विवाद-ग्रस्त था, ऐसा जान पड़ता है। यही वजह है जो 'तिलोयपण्णत्ति' (त्रिलोकप्रज्ञप्ति) नामक प्राकृत ग्रंथमें इस विषयके चार विभिन्न मतोंका उल्लेख किया गया है* यथा वीरजिणं सिद्धिगदे चउसद-इगसहिवासपरिमाणो। कालंमि अदिक्कते उप्पण्णो एत्थ सगराओ ॥ ८६ ॥ अह वा वीरे सिद्धे सहस्सणवकंमि सगसयभहिये। पणसीदिमि यतीदे पणमासे सगणिओ जादो ॥ ८७ ॥ चोदस सहस्स सगसय ते-णउदी-वासकालविच्छेदे । वीरेसरसिद्धीदो उप्पण्णो सगणिओ अह वा ।। ८८॥ णिव्वाणे वीरजिणे छन्वाससदेसु पंचवरिसेसु । पणमासेसु गदेसुं संजादो सगणिओ अहवा ।। ८९ ॥ अर्थात्-वीर जिनेन्द्रकी सिद्धिपदप्राप्तिके बाद जब ४६१ वर्ष बीत गये तब यहाँ पर शक नामक राजा उत्पन्न हुआ। अथवा वीर * देखो जैनहितैषी, भाग १३, अंक १२, पृष्ठ ५३३ ।
SR No.010776
Book TitleSwami Samantbhadra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1925
Total Pages281
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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